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________________ 118 • बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला बुद्ध के उपदेशों को पर्याप्त जनाधार प्राप्त हुआ। वर्तमान काल में भी बुद्ध के उपदेश एवं बौद्धदर्शन के सिद्धान्त उतने ही प्रासंगिक हैं जितने बुद्ध के समय में थे। डॉ. राधाकृष्णन इस विषय में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहते हैं - "मानवतावादी लोग आनन्द, प्रतिष्ठा और समस्त मानवों के मानसिक एकीकरण सम्बन्धी अपने सिद्धान्तों का बुद्ध को प्रथम प्रचारक मानते हैं। सामाजिक आदर्शवादी, नैतिक रहस्यवादी, बौद्धिक भविष्यवादी सभी बुद्ध के उपदेशों से आकृष्ट हुए हैं तथा अपने पक्ष की सत्यता के लिए बुद्ध का आश्रय लेते हैं। बुद्ध के उपदेशों का हमारे युग के लिए बड़ा मूल्य है।" 21 पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने अन्ताराष्ट्रीय सम्बन्धों के लिए कुछ सिद्धान्तों को विश्व के सामने रखा जिन्हें पञ्चशील के नाम से जाना जाता है। पण्डित नेहरू ने स्वयं कहा कि पञ्चशील के सिद्धान्तों का अर्थ एक अलग प्रकार की दृष्टि और विकास का विशिष्ट मार्ग है। लेकिन इसका विस्तृत एवं अन्तिम लक्ष्य है सभी राष्ट्रों में परस्पर संवेदना और वैचारिक समानता का भाव फैलाना, लेकिन बिना किसी के आन्तरिक मामलों में दखल दिए। सोवियत नेताओं के स्वागत हेतु कलकत्ता में सभा हुई जिसमें नहेरू के पञ्चशील का जिक्र करते हुए कहा गया "भारतीय चिन्तन के लिए पञ्चशील कोई नई अवधारणा नहीं है। यह भारतीय विचारधारा तथा संस्कृति में निहित है, आखिरकार पञ्चशील सहिष्णुता का संदेश ही तो है। इस विशाल और परम्परा विरोधी विश्व में पञ्चशील शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की अवधारणा से हमें सम्मान मिला है। हम यह सम्मान इसलिए पा सके हैं, क्योंकि हमारी विचारधारा सही है व ऐसे सिद्धान्तों पर आधारित है जो अवसरवादी नहीं है - 1. परस्पर एक दूसरे की भौगोलिक अखण्डता व सम्प्रभुता का सम्मान। 2. एक दूसरे पर आक्रमण नहीं करना। 3. एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना। 4. परस्पर समानता तथा लाभ के आधार पर कार्य करना। 5. शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व।"22 पण्डित नेहरू द्वारा स्थापित पञ्चशील की इस अवधारणा से ही अन्ताराष्ट्रीय सम्बन्धों को पुनः शान्तिपूर्ण एवं वैश्विक सद्भावना के साथ विकसित किया जा सकता संस्कृत विभाग, जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर 21. गौतम बुद्ध, डॉ. राधाकृष्ण राजपाल एण्ड सन्स, कश्मीरी गेट, दिल्ली 2011 संस्करण, पृ. 27 22. जवाहरलाल नेहरू के भाषण भाग - 2, प्रकाशन विभाग, पृ. 19 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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