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________________ वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पंचशील की प्रासंगिकता 115 मिथ्यापदेश का तात्पर्य है गलत - सही समझा-बुझाकर गलत राह पर प्रविष्ट कराना। वर्तमान में प्रिया गोल्ड, गोल्ड सुख काण्ड इसकी ओर ही संकेत करते हैं, जिसके कारण लोभ में आकर हजारों लोगों ने निवेश किया एवं इनके मालिकों द्वारा जबरदस्त ठगी का शिकार हुए। रहस्याभ्याख्यान - रागवश विनोद हेतु पति-पत्नी या स्नेहीजनों द्वारा परस्पर रहस्य का कथन करके एक दूसरे से अलग करना । कलियुग में सम्बन्धों में निरन्तर बढ़ती दूरियां इसी अतिचार का संकेत हैं। इससे परस्पर अविश्वास का वातावरण उत्पन्न होता है। अतः इस प्रकार के व्यवहार से बचना आवश्यक है। कूटलेखक्रिया - हस्ताक्षर, मोहर आदि द्वारा झूठा कार्य करना । वर्तमान में इस प्रकार के कार्य-कलाप बहुलता से द्रष्टव्य हैं। इसी कारण से कई नकली -प्रमाण पत्र, बैंक फारजरी आदि प्रकरण सुर्खियों में रहते हैं। न्यासापहार- कोई धरोहर रखकर भूल जाए तो उसका लाभ उठाकर थोड़ी या पूरी धरोहर दबाना । साकार मन्त्रभेद - किसी भी आपसी प्रीति तोड़ने के लिए एक दूसरे की चुगली करना या किसी की गुप्त बात प्रकट करना । वर्तमान काल में एम.एम.एस., सीड़ी प्रकरण, फोन टेपिंग आदि के द्वारा ब्लेकमेलिंग का कारोबार अत्यधिक बढ़ रहा है। इन पाँच प्रकार के अतिचारों का त्याग आवश्यक है, अन्यथा पापार्जन के साथ-साथ समाज की व्यवस्थाओं के भी नष्ट होने की संभावना है। अस्तेय तत्त्वार्थ में स्तेय लक्षण इस प्रकार है- अदत्तादानं स्तेयम् 4 अर्थात् बिना दिए लेना चोरी है - किसी अन्य के स्वामित्व की वस्तु यदि तृणवत् है तो भी बिना उसकी आज्ञा के लेना चोरी के अन्तर्गत है । चोरी की ऐसी सूक्ष्म व्याख्या की वर्तमान काल में प्रतिष्ठा अत्यावश्यक है। इसके पाँच अतिचार बताए गए हैं - स्तेनप्रयोग, स्तेनाहृतादान, राज्य - विरुद्ध कार्य, हीनाधिक मानोन्मान एवं प्रतिरूपक व्यवहार - ये पाँच प्रकार के अतिचार भी वर्तमान में सर्वत्र स्तेय का बाहुल्य प्रकट कर रहे हैं। आयात-निर्यात कर चोरी, चुराई गई वस्तु का छद्म रूप से व्यापार, तोल में गड़बड़ी, नकली नोट का चलाना आदि प्रकार आज बहुतायत से बढ़ रहे हैं । ब्रह्मचर्य 'मैथुनमब्रह्म' अब्रह्म के विपरीत आचरण ब्रह्मचर्य है । तत्त्वार्थसूत्र में इसके पाँच अतिचार हैं - परविवाहकरणेत्वरपरिगृहीताऽपरिगृहीतागमनानङ्गक्रीडा तीव्रकामाभिनिवेशा:'s 14. तत्वार्थसूत्र 7.10 15. तत्त्वार्थसूत्र 7.23 Jain Education International For Personal & Private Use Only 15 www.jainelibrary.org
SR No.004152
Book TitleBauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Shweta Jain
PublisherBauddh Adhyayan Kendra
Publication Year2013
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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