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114 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला
अहिंसा
तत्वार्थसूत्र में अहिंसा का लक्षण न करके हिंसा का स्वरूप निर्दिष्ट है।
- प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणम् हिंसा। " अर्थात् राग-द्वेष से युक्त होकर मानसिक, वाचिक या कायिक रूप से प्राण-व्यपरोपण हिंसा है, इसके विपरीत अहिंसा है। इस अहिंसा के पांच अतिचार हैं -
बन्ध, वध, छविच्छेद, अतिभार का लादन, अन्न-पान का निरोध - इन पाँच अतिचारों से बचना आवश्यक है -
सत्य
तत्त्वार्थसूत्र में असत्य अथवा अनृत का लक्षण है - असदभिधानमनृतम्।" महाभारत में सत्य के स्वरूप तेरह बताए गए हैं -
प्राप्यते च यथा सत्यं तच्च श्रोतुमर्हसि। सत्यं त्रयोदशविधं सर्वलोकेषु भारत।। सत्यं च समता चैव दमश्चैव न संशयः। अमात्सर्यं क्षमा चैव ह्रीस्तितिक्षानसूयता।। त्यागो ध्यानमथार्यत्वं धृतिश्च सततं स्थिरा।
अहिंसा चैव राजेन्द्र सत्याकारास्त्रयोदश।।12 अर्थात् सत्य, समता, दम, अमात्सर्य, क्षमा, ह्री, तितिक्षा, अनसूयता, त्याग, ध्यान, आर्यत्व, स्थिरमति एवं अहिंसा सत्य का स्वरूप है। अतः किसी भी रूप में सत्य रूप धर्म की प्रतिष्ठा आवश्यक है। सत्य की प्रतिष्ठा होने का फल द्रष्टव्य है -
- काले गावः प्रसूयन्ते नार्यश्च भरतर्षभ।
भवन्त्युतुषु वृक्षाणां पुष्पाणि च फलानि च।।13 अर्थात् सत्य की प्रतिष्ठा होने पर गाएँ समय पर प्रसव करती है। स्त्रियाँ भी ऋतुकाल में प्रसव करती हैं यहा तक कि वृक्षों के पुष्प व फल भी ऋतु के अनुसार वर्धन करते हैं।
मिथ्योपदेश, रहस्याभ्याख्यान, कूटलेखक्रिया, न्यासापहार और साकार-मन्त्र भेद ये पाँच सत्य के अतिचार हैं। वर्तमान काल में इस प्रकार के अतिचारों का बाहुल्य सर्वत्र दिखाई देता है -
10. तत्त्वार्थसूत्र, 7.8 11. तत्वार्थ सूत्र 7.9 12. महाभारत शान्तिपर्व 162.7,8-9 13. महाभारत शान्ति पर्व, 64.25
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