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1112 * बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला लेना चाहिए। सम्यक् कर्मान्त का अर्थ है बुरे कर्मों का त्याग । बुद्ध के अनुसार तीन पाप कर्म हैं - हिंसा, स्तेय एवं इन्द्रिय-निग्रह का अभाव। सम्यक् कर्मान्त इन तीन कर्मों का विपरीत है अर्थात् हिंसा न करना, चोरी न करना एवं इन्द्रियों का निग्रह करना।
भगवान बुद्ध ने कहा -
जो जीव हिंसा करता है, झूठ बोलता है, चोरी करता है परस्त्रीगमन करता है, सुरापान करता है, वह इस संसार में अपनी ही जड़ खोदता है।
यो पाणमतिपातेति मुसावादं च भासति। लोके अदिन्नं आदियति परदारं च गच्छति।। . '
सुरामेरयपानं चयो नरो अनुयुञ्जति।
इधेवमेसो लोकस्मिं मूलं खणति अत्तनो।। सम्यक् आजीविका-सम्यक् कर्म से सम्यक् जीवन बनता है। निषिद्ध कर्मों को त्यागकर छल, कपट रहित ईमानदारी से जीविका अर्जन सम्यक् आजीविका है। पालिनिकाय में पाँच प्रकार के कर्मों का निषेध किया गया है- . 1. सत्थ वाणिज्जा अर्थात् शस्त्र का व्यापार 2. सत्त वाणिज्जा अर्थात् प्राणी का व्यापार , 3. मंस वाणिज्जा अर्थात माँस का व्यापार 4. मज्ज वाणिज्जा अर्थात् मद्य का व्यापार 5. विस वाणिज्जा अर्थात् विष का व्यापार
इन निषिद्ध कर्मों को त्याग कर उचित मार्ग से जीविकोपार्जन करना चाहिए, यही सम्यक् आजीविका है। भगवान् बुद्ध ने प्राणिमात्र के लिए धम्म का सार इस रूप में बताया -
सव्वपापस्स अकरणं कुसलस्स उपसम्पदा।
सचित्तपरियोदपनं एतं बुद्धानं सासनं।। वस्तुतः शील समाधि एवं प्रज्ञा ही बुद्धधर्म का सार है शील के बिना प्रज्ञा एवं प्रज्ञा के बिना शील अधूरे हैं -
शील पर बुद्ध ने अत्यधिक महत्त्व देते हुए कहा -
यो च वस्ससतं जीवे दुस्सीलो असमाहितो।
एकाहं जीवितं सेय्यो सीलवन्तस्स झायिनो।। 4. धम्मपद, मलवग्गो12-13 5. धम्मपद, बुद्धवग्गो 14.5 6. धम्मपद, सहस्स वग्गो गाथा।।
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