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बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला * 103 2. भव प्रवाह की व्याख्या के लिए किसी 'परासत्ता' की परिकल्पना की
अनावश्यकता का प्रतिपादन। दो अतियों से बचना, दर्शन में मध्यम मार्ग है। 3. दुःख सत्य है - इसकी स्थापना। 4. चिन्तन के क्षेत्र में दार्शनिक तथा नैतिक पक्ष के साथ-साथ भौतिक तथा
मनोवैज्ञानिक पक्षों को भी उतना ही महत्त्व प्रदान करना - 'अभिधम्मत्थसंगहो' में अधिधर्मों को चार समूहों में रखा गया है - 1. चित्त 2. चैतसिक 3. रूप और 4. निर्वाण। रूप के अन्तर्गत सभी भौतिक जगत् के पदार्थ आ जाते हैं। चित्त और चैतसिक पदार्थों के अन्तर्गत मनोवैज्ञानिक (Emotional) पदार्थ भी संगृहीत हैं, जैसे प्रीति, सुख इत्यादि । इस प्रकार मनोवैज्ञानिक वृत्तियों को भी शुद्ध दर्शन के क्षेत्र के अन्तर्गत रखा गया है; यह बुद्ध के चिन्तन की मौलिकता है। कवि इकबाल ने बुद्ध के दर्शन के वैशिष्ट्य को रेखांकित करते हुए कहा है - कोम ने पैगामे गौतम की ज़रा परवा न की कद्र पहचानी न अपने गौहरे यकदाना की (अद्वितीय मोती) . आशकार (प्रकट) उसने किया जो जिंदगी की राज़ था हिन्द को लेकिन ख्याली फल्सफे पर नाज़ था आह, शूद्र के लिए हिन्दोस्तां गमख़ाना है । दर्दे इन्सानी से इस बस्ती का दिल बेगाना है बरह मन सरशार है अब तक मए पिन्दार (अहंकार की मदिरा) में शम ए गौतम जल रही है महफिलें अगियार (गैरों की महफिल) में
बुद्ध का दर्शन आज पूरे विश्व में धर्मदूत का कार्य कर रहा है। भारत में इस विद्या के पुनर्विकास के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने विश्वविद्यालयों में बौद्ध अध्ययन केन्द्र स्थापित कर सराहनीय कदम उठाया है। बौद्ध दर्शन के सैद्धान्तिक पक्ष के रूप में पाठ्यक्रम का और व्यावहारिक पक्ष के रूप में विपश्यना साधना का शिक्षण देकर विश्वविद्यालय के छात्रों को युगानुकूल बनाया जा सकता है।
- संस्कृत विभाग मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय
उदयपुर (राज)
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