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आगम
(४५)
अनुयोगद्वार”- चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:)
............. मूलं [१३४] / गाथा ||९९-१००|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र - [२] "अनुयोगद्वार" मूलं एवं हेमचन्द्रसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[१३४]
अनुयो मलधा
HARASES
प्रमाणद्वार
१६०॥
गाथा: ||-II
गमेणं ववहा ववहारिए से जम अ ववहारिएका
से किं तं उस्सेहंगुले ?, २ अणेगविहे पण्णत्ते, तंजहा-परमाणू तसरेणू रहरेणू अग्गयं च वालस्स । लिक्खा जूआ य जवो अट्टगुणविवडिआ कमसो ॥१॥से किं तं परमाणू?, २ दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-सुहुमे अ ववहारिए अ, तत्थ णं जे से सुहमे से ठप्पे, तत्थ णं जे से ववहारिए से णं अणंताणताणं सुहमपोग्गलाणं समुदयसमितिसमागमेणं ववहारिए परमाणुपोग्गले निप्फजइ, से णं भंते ! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेजा ?, हन्ता ओगाहेजा, से णं तत्थ छिज्जेज वा भिजेज वा?, नो इणट्रे समहे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ, से णं भंते ! अगणिकायस्स मज्झमज्झेणं वीइवएज्जा?, हंता विइवएजा, से णं भंते ! तत्थ डहेज्जा?, नो इणढे समढे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ, से णं भंते! पुक्खरसंवदृगस्स महामेहस्स मज्झमज्झेणं वीइवएज्जा ?, हंता वीइवएज्जा, से णं तत्थ उदउल्ले सिआ?, नो इणटे समटे, णो खल्लु तत्थ सत्थं कमइ, से णं भंते! गंगाए महाणईए पडिसोयं हव्वमागच्छेज्जा?, हंता हव्वमाग
दीप अनुक्रम [२५७-२७०]
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