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________________ आगम (४४) “नन्दी'- चूलिकासूत्र-१ (मूलं+वृत्तिः ) ................... मूलं [५६/गाथा ||८१...|| ......... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[४४], चूलिका सूत्र-[१] "नन्दीसूत्र" मूलं एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति: विपाकभु. प्रत *CARE दृष्टिवादेपरिकर्माद्य सूत्रांक [५६] धिकारः C .५७ SSACREASUREORECRee देवलोगगमणाई सुहपरंपराओ सुकुलपञ्चायाईओ पुणवोहिलाभा अंतकिरिआओ आघविजंति । विवागसुयस्स णं परित्ता वायणा संखिज्जा अणुओगदारा संखेजा वेढा संखेजा सिलोगा संखेजाओ निजुत्तीओ संखिजाओ संगहणीओ संखिज्जाओ पडिवत्तीओ, से गं अंगट्रयाए इक्कारसमे अंगे दो सुअक्खंधा वीसं अज्झयणा वीसं उद्देसणकाला वीसं समुद्देसणकाला संखिज्जाई पयसहस्साई पयग्गेणं संखेज्जा अक्खरा अणंता गमा अणंता पजवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासयकडनिबद्धनिकाइआ जिणपन्नत्ता भावा आघविजंति पन्नविजंति परूविजंति दंसिर्जति निदंसिजति उवदंसिजंति, से एवं आया एवं नाया एवं विनाया एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ, से तं विवागसुयं ११ (सू. ५६) ___अथ किं तद्विपाकश्रुतं ?, विपचन विपाकः शुभाशुभकर्मपरिणाम इत्यर्थः तत्प्रतिपादकं श्रुतं विपाकश्रुतं, शेष सर्वमानिगमनं पाठसिद्ध, नवरं सङ्ख्येयानि पदसहस्राणीति एका कोटी चतुरशीतिलेक्षा द्वात्रिंशच सहस्राणि । से किं तं दिट्टिवाए , दिठिवाए णं सब्वभावपरूवणा आघविजइ, से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तंजहा-परिकम्मे १ सुत्ताई २ पुव्वगए ३ अणुओगे ४ चूलिआ५, से किं तं परिकम्मे?, २- दीप अनुक्रम [१४९] २-CSCIES SAPERaininainarana दृष्टिवाद-अंग सूत्रस्य शास्त्रिय परिचय: प्रस्तुयते ~472~
SR No.004146
Book TitleAagam 44 NANDISOOTRA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages514
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size114 MB
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