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________________ आगम (४४) “नन्दी'- चूलिकासूत्र-१ (मूलं+वृत्तिः ) ................ मूलं [५०-५१]/गाथा ||८१...|| .......... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[४४], चूलिका सूत्र-[१] "नन्दीसूत्र" मूलं एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक व्याख्याविकार ज्ञाताधि कारः स. ५०-५१ [५०-५१] दीप अनुक्रम श्रीमलय-1 चपंचउवक्खाइआसयाई एगमेगाए उवक्खाइआए पंचपंचअक्खाइउवक्खाइआसयाई एवगिरीया ६ मेव सपुवावरेणं अदुवाओं कहाणगकोडीओ हवंतित्ति समक्खायं, नायाधम्मकहाणं परित्ता नन्दीवृत्तिः वायणा संखिजा अणुओगदारा संखिज्जा वेढा संखिजा सिलोगा संखिजाओ निज्जुत्तीओ ॥२३०॥ संखिजाओ संगहणीओ संखजाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्ठयाए छठे अंगे दो सुअक्खंधा एगृणवीसं अज्झयणा एगूणवीसं उद्देसणकाला एगूणवीसं समुद्देसणकाला संखेजा पयसहस्सा पयग्गेणं संखेज्जा अक्खरा अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासयकडनिबद्धनिकाइआ जिणपन्नत्ता भावा आघविजन्ति पन्नविजंति परूविजंति दंसिर्जति निदंसिर्जति उव. दंसिर्जति, से एवं आया एवं नाया एवं विण्णाया एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ, से तं नायाधम्मकहाओ६। (सू. ५१) अथ केयं व्याख्या ?, व्याख्यायन्ते जीवादयः पदार्था अनयेति व्याख्या, 'उपसर्गादात' इत्यङ्प्रत्ययः, तथा चाह |सूरि:-'विवाहे ण'मित्यादि, व्याख्यायां जीवा व्याख्यायन्ते शेपमानिगमनं पाठसिद्धं, । 'से किं त'मित्यादि, अथ कास्ता ज्ञाताधर्मकथाः ?, ज्ञातानि-उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथाः, अथवा ज्ञातानि-जाताध्ययनानि [१४३ -१४४] ॥२३०॥ २३ SAREauratoninternational ~ 463~
SR No.004146
Book TitleAagam 44 NANDISOOTRA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages514
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size114 MB
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