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आगम
(४४)
“नन्दी'- चूलिकासूत्र-१ (मूलं+वृत्तिः )
.............. मूलं [३५-३६]/गाथा ||७४...|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[४४], चूलिका सूत्र-[१] "नन्दीसूत्र" मूलं एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [३५-३६]
श्रीमलयगिरीया नन्दीवृत्तिः ॥१७७॥
प्रतियोधकदृष्टान्तोमल्लकदृष्टान्यश्च
दीप अनुक्रम [११९-१२०
असंखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति?, एवं वदंतं चोअगं पण्णवए एवं वयासी-नो एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति नो दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति जाव नो दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति नो संखिजसमयपबिट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति असंखिजसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, से तं पडिबोहगदिदैतेणं । से किं तं मल्लगदिटुंतेणं?, मल्लगदिटुंतेणं से जहानामए केइ पुरिसे आवागसीसाओ मल्लगं गहाय तत्थेगं उदगबिंदु पक्खेविजा, से नट्रे, अण्णेऽवि पक्खित्ते सेऽवि नढे, एवं पक्खिप्पमाणेसु पक्खिप्पमाणेसु होही से उदगबिंदू जे णं तं मल्लगं रावेहिइत्ति, होही से उदगबिंदू जे णं तंसि मल्लगंसि ठाहिति, होही से उदगबिंद जेणं तं मल्लगं भरिहिति, होही से उदगबिंदू जे णं तं मल्लगं पवाहेहिति, एवामेव पक्खिप्पमाणेहिं पक्खिप्पमाणेहिं अणंतेहिं पुग्गलेहिं जाहे तं वंजणं पूरिअं होइ ताहे इंति करेइ, नो चेव णं जाणइ केवि एस सदाइ ?, तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस सद्दाइ, तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ, तओणंधारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखिजं वा कालं असंखिजं वा कालं। से जहानामए केइ पुरिसे
॥१७७॥
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