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आगम
“उत्तराध्ययनानि”- मूलसूत्र-४ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [३६], मूलं [-] /गाथा ||१५-४६|| नियुक्ति : [५५६...], भाष्यं [१५...]
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प्रत सूत्रांक
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उत्तराध्य. विवक्षितक्षेत्रावस्थितेः प्रच्युतानां पुनस्तत्मासेर्व्यवधानमेतद्-उक्तरूपं व्याख्यातं, तेषा हि विवक्षितक्षेत्रावस्थिति- जीवाजीव बृहद्वृत्तिः प्रच्युतानां कदाचित्समयावलिकादिसङ्ख्यातकालतोऽसंख्यातकालाद्वा पल्योपमादेर्यावदनन्तकालादपि सम्भवतीति
विभक्तिः सूत्रत्रयार्थः ॥ एतानेद भावतो विधातुमाह॥६७५||
बन्नओ गंधओचेच, रसओ फासओ तहा। संठाणओ य विनेओ, परिणामो तेसि पंचहा ॥१५॥ वनओ परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया। किण्हा नीला य लोहिया, हालिद्दा सुकिला तहा ॥१६॥ गंधओ परिणया जे य, दुविहा ते वियाहिया। सुन्भिगंधपरिणामा, दुन्भिगंधा तहेव य॥१७॥ रसओ परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया । नित्त कडुयकसाया, अंबिला महुरा तहा ॥१८॥ फासओ परिणया जे उ, अट्टहा ते पकित्तिया । कक्खडा मउया चेव, गुरुया लहया तहा ॥१९॥ सीया उपहा य निद्धा य, तहा। लुक्खा य आहिया । इति फासपरिणया एए, पुग्गला समुदाहिया ॥२०॥ संठाणपरिणया जे उ, पंचहा
से पकित्तिया । परिमंडला य वहा य, तंसा च उरंसमायया ॥ २१॥ वपणओ जे भवे किण्हे, भइए से उ| १|| गंधओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य॥२२॥ वपणओ जे भवे नीले, भइए से उ गंधओ। है रसओ फासओ चेच, भइए संठाणओविय ॥२३॥ वष्णओ लोहिए जे उ, भइए से उ गंधओ । रसओX साफासओ चेव, भइए संठाणओथि य॥ २४ ॥ वपणओ पीअए जे उ, भइए से उगंधओ। रसओ फासओ
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-Rato
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दीप अनुक्रम [१४७९-१५१०]
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४३], मूलसूत्र - [४] "उत्तराध्ययनानि" मूलं एवं शान्तिसूरि-विरचिता वृत्ति:
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