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________________ आगम “उत्तराध्ययनानि"- मूलसूत्र-४ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [३२], मूलं [-] / गाथा ||२२-९९|| नियुक्ति : [५२६...] (४३) प्रत ना. सूत्रांक [२२ -९९] उत्तराध्यं.६ विवागे ॥ ३३ ॥ रूवे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमझेवि संतो, जले टण वा पुक्खरिणीपलासं ॥ ३४ ॥ सोयरस सदं गहणं वयंति, तं रागहे तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेजे अमणु-|| बृहद्वृत्तिः नमाहु, समो अ जो तेसु स वीयरागो ॥ ३५॥ सहस्स सोयं गहर्ण वयंति, तं रागहे तु मणुन्नमाहु । ॥६२९॥ तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो अ जो तेसु स वीयरागो ॥ ३६॥ सद्देसु जो गेहिमुवेइ तिब्ब, अकालिय 4 पावइ सो विणासं। रागाउरे हरिणमिउब्व मुन्डे, सद्दे अतिते समुवेइ मझु ॥ ३७॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उबेइ दुक्खं । दुईतदोसेण सएण जंतू, न किंचि सई अवरज्झई से ॥ ३८॥ एगतरत्ते रुइरंसि सद्दे० ॥ ३९॥ सहाणुगासाणु०॥४०॥ सहाणुवाएण परिग्गहेण ॥४१॥ सद्दे अतिते०४२ तण्हाभिभूयस्स०॥४३॥ मोसस्स पच्छा य॥४४॥ सदाणु ॥४५॥ एमेव सइंमि०॥४ा सहे विरत्तो ॥४७॥ घाणस्स गंधं गहणं वयंति०॥४८॥ गंधस्स घाणं ॥४९॥ गंधेसु जो गेहिं० रागाउरे ओसहिगंद्विधगिद्धे, सप्पे पिलाओ विष निक्खमंते ॥५०॥ जे यावि दोसं०॥५१॥ एगतरत्तो भइरंमि गंधे० ॥५२।। Iगंधाणु०॥५३॥ गन्धाणुवा०॥५४॥ गंधे अतित्ते॥५५॥ तण्हा०॥५६॥ मोसस्स०॥५७॥ गंधाणु014 ॥ ५८ ॥ एमेव गंधमि०॥ ६९॥ गंधे विरत्तो०॥६०॥ जिन्भाए रसं गहणं० ॥११॥ रसस्स जीहं गहणं |वयंति०॥६२॥ रसेसु जो गेहि रागाउरे बडिसविभिन्नकाए, मच्छे जहा आमिसभोगगिद्धे ॥ ३३॥ गाथा १३ ॥७३॥ कायस्स फासं गहणं वयंति०१॥ फासस्स कायं गहणं० २॥ फासेसु जो गेहिमुकारागाउरे सीयज दीप अनुक्रम [१२६८-१३४५]] ॥२९॥ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४३], मूलसूत्र - [४] "उत्तराध्ययनानि" मूलं एवं शान्तिसूरि-विरचिता वृत्ति: ~ 1256~
SR No.004145
Book TitleAagam 43 UTTARAADHYAYANAANI Moolam evam Vruttii
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages1428
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size288 MB
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