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आगम
“उत्तराध्ययनानि”- मूलसूत्र-४ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [३२], मूलं [-]/गाथा ||२२-९९|| नियुक्ति: [५२६...]
(४३)
प्रत सूत्रांक
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चक्खुस्स रूवं गहणं वयंति, तं रागहे तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउ अमणुन्नमाहु, समो अ जो तेसु स वीयरागो॥२२॥ रुवस्स चक्खं गहणं वयंति, चक्खुस्स रूवं गहणं वयंति । रागस्स हे समणुन्नमाहु, दोसस्स हे अमणुन्नमाहु ॥२३॥ रूवेसु जो गिद्धिमुवेइ तिब्वं, अकालियं पावा सो विणासं । रागा-IN उरे से जहवा पयंगे, आलोअलोले समुह मई ॥२४॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिब्ब, तंसि क्खणे से व उवेद |दुक्खं । दुईतदोसेण सएण जंतू, न किंचि रूवं अवरज्झई से ॥ २५ ॥ एगंतरत्तो रुहरंसि रूवे, अतालिसे |से कुणई पओस । दुक्खस्स संपीलमुवेइ वाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागे ॥ २६ ॥ रूवाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरेहिं सयणेगरूवे । चित्तेहिं ते परियावेह चाले, पीलेइ अत्तगुरू किलिट्टे ॥ २७ ॥ रूवाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसंनिओगे । वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे? ॥२८॥ रूवे अतिते अपरिग्गडंमि, सत्तोवसत्तो न उबेद तुहि । अतुढिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आयई अदत्तं ॥ २९ ॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, रूवे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वडइ
लोभदोसा, तत्वावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥३०॥ मोसस्स पच्छा य परत्यओ य, पओगकाले य दुही *दुरंते । एवं अदत्ताणि समायअंतो, रूवे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो॥ ३१ ॥ रूवाणुरत्तस्स नरस्स एवं,
कत्तो मुहं हुन्ज कपाइ किंचि। तत्थोवभोगेऽवि किलेसदुक्ख, निव्वतई जस्स करण दुक्खं ॥३२॥ एएमेव रूवंमि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पदुद्दचित्तो अ चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं|
दीप अनुक्रम [१२६८-१३४५]
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४३), मूलसूत्र - [४] "उत्तराध्ययनानि" मूलं एवं शान्तिसूरि-विरचिता वृत्ति:
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