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________________ आगम “उत्तराध्ययनानि”- मूलसूत्र-४ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [३२], मूलं [-]/गाथा ||१०-२०|| नियुक्ति: [५२६...] (४३) प्रत EXMAR-4 -२० रसा पगामं न हु सेवियब्वा, पायं रसा दितिकरा नराणं । दित्तं च कामा समभिवंति, दुर्म जहा साउफलं व पक्खी ॥१०॥ जहा दवग्गी परिंधणे वणे, समारुओ नोवसमं वेइ । एर्विदियग्गीवि पगामभोइणो, न बंभयारिस्स हियाय कस्सई ॥ ११ ॥ विवित्तसिज्जासणजंतियाणं, ओमासणाणं दमिइंदियाणं । न रागसत्तू धरिसेइ चित्तं, पराइओ वाहिरिवोसहेहि ॥ १२ ॥ जहा बिरालावसहस्स मूले, न मूसगाणं वसही पसत्था । एमेव इत्थीनिलयस्स मज्झे, न बंभयारिस्स खमो निवासो ॥ १३॥ न रूबलावण्णविलासहासं, न जंपियं इंगिय पेहियं वा । इस्थीण चित्तंसि निवेसइत्ता, दडे ववस्से समणे तवस्सी ॥१४॥ अदसणं चेच अपत्थणं च, अचिंतणं चेव अकित्सणं च । इत्थीजणस्सारियझाणजुग्गं, हियं सया बंभवए रयाणं ॥ १५ ॥ कामं तु देवीहिं विभूसियाई, न चाइया खोभइ तिगुत्ता । तहावि एगंतहियंति नथा, विवित्सवासो मुणिणं पसत्थो ॥१६॥ मुक्खाभिकंखिस्सवि माणवस्स, संसारभीरुस्स ठियस्स धम्मे । नेयारिस दुसरमस्थि लोए,जहत्थिओ बालमणोहराओ॥१७॥ एए य संगा समइक्कमित्ता, सुहत्तरा चेव हवंति सेसा।जहा महासागरमुत्तरित्ता, नई भषे अवि गंगासमाणा ॥१८॥ कामाणुगिद्धिप्पभवं खु दुक्खं, सव्वस्स लोगस्स सदेवगस्स-जं काइयं माणसियं च किंचि, तस्संतयं गच्छा बीयरागो ॥१९॥ जहा य किंपागफला मणोरमा, |रसेण धनेण य भुजमाणा । ते खुप जीविय पञ्चमाणा, एओवमा कामगुणा विधागे ॥२०॥ दीप अनुक्रम [१२५६-१२६६] FAA% मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४३), मूलसूत्र - [४] "उत्तराध्ययनानि" मूलं एवं शान्तिसूरि-विरचिता वृत्ति: ~1247~
SR No.004145
Book TitleAagam 43 UTTARAADHYAYANAANI Moolam evam Vruttii
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages1428
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size288 MB
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