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आगम
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“दशवैकालिक”- मूलसूत्र-३ (मूलं+नियुक्ति:+|भाष्य+वृत्ति:) अध्ययनं [३], उद्देशक [-], मूलं -1 / गाथा ||११...|| नियुक्ति: [१९२], भाष्यं [४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.....आगमसूत्र-[४२], मूल सूत्र-[३] “दशवैकालिक” मूलं एवं हरिभद्रसूरि-विरचिता वृत्ति:
प्रत
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सूत्रांक
||११..||
दीप अनुक्रम [१६..]
नादानद्वारेणोदाहरणमभिदधति, दृष्टमधिकृत्य कामकथा यथा नारदेन रुक्मिणीरूपं दृष्ट्वा वासुदेचे कृता, श्रुतं
त्वधिकृत्य यथा पद्मनाभेन राज्ञा नारदाद्रौपदीरूपमाकर्ण्य पूर्वसंस्तुतदेवेभ्यः कथिता, अनुभूतं चाधिकृत्य कामकथा यथा-तरङ्गवत्या निजानुभवकथने, संस्तवश्च-कामकथापरिचयः 'कारणानीतिकामसूत्रपाठात्,
अन्ये त्वभिदधति-'सइदसणाउ पेम्म पेमाउ रई रईय विस्संभो । विस्संभाओ पणओ पञ्चविहं वहुए || पेम्म ॥१॥” इति गाथार्थः । उक्ता कामकथा, धर्मकथामाह
धम्मकहा बोद्धव्वा चउब्विहा धीरपुरिसपन्नत्ता । अखेवणि विक्खेवणि संवेगे चेव निव्वेए ॥ १९३ ।। आयारे ववहारे पन्नती व दिट्टीवाए य । एसा चउब्विहा खलु कहा उ अक्खेवणी होइ ।। १९४ ॥ विजा परणं च तवो पुरिसकारो य समिइगुत्तीओ । उवइस्सइ खलु जहियं कहाइ अक्खेवणीइ रसो।। १९५॥ कहिऊण ससमयं तो कहेइ परसमयमह विवचासा । मिच्छासम्मावाए एमेव हवंति दो भेया ॥ १९६ ॥ जा ससमयवजा खलु होइ कहा लोगवेयसंजुता । परसमयाणं च कहा एसा विक्खेवणी नाम ॥ १९७ ॥ जा ससमएण पुब्बि अक्खाया तं छुभेज परसमए । परसासणवक्खेवा परस्स समयं परिकहेइ ॥ १९८ ॥ आयपरसरीरगया इहलोए चेव तहय परलोए । एसा चउबिहा खलु कहा उ संवेयणी होई ॥ १९९ ॥ बीरियविउव्वणिड्डी नाणचरणदसणाण तह इट्टी । उवइस्सइ खलु जहियं कहाइ संवेयणीइ रसो ॥ २०॥ पावाणं कम्माण असुभविवागो कहिजए जत्थ । इह य परत्थ य लोए कहा उणिवेयणी नाम ॥२०१॥ थोपि पमायकयं कम्मं साहिजई जहिं नियमा । पउरासुहपरिणामं कहाइ निवेयणीइ रसो । २०२ ।। सिद्धी य
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