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________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [3] Jus Educate आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (मूलं+निर्युक्तिः+वृत्तिः) मूलं [ १ / गाथा - ], निर्युक्तिः [९४२], अध्ययन [ - ], विलिंपित्ता, विरेयणं दिनं, वोसिरियं, लट्ठो हुओ, वेजस्स उ पत्तिया बुद्धी ॥ बितिओ सरडो - भिक्खुणा खुड्डगो पुच्छिओएस किं सीसं चालेइ, सो भणइ किं भिक्खू भिक्खुणी वा १, खुड्डुगस्स उप्पत्तिया बुद्धी ॥ कागे तच्चण्णिएण चेहओ पुच्छिओ-अरहंता संद्दण्णू ?, बाढं, केत्तिया इहं काका १, 'सहि काकसहस्साई जाई बेन्नायडे परिवसंति । जइ ऊणगा पवसिया अम्भहिया पाहुणा आया ॥ १ ॥' खुड्डगस्स उप्पत्तिया बुद्धी ॥ बितिओ-वाणियओ निहिंमि दिट्ठे महिलं परिक्खइ रहस्सं धरेइ न वत्ति, सो भणइ-पंडुरओ मम काको अहिद्वाणं पविट्ठो, ताए सहज्जियाण कहियं, जाव रायाए सुर्य, पुच्छिओ, कहियं, रन्ना से मुक्कं मंती य निउतो, एयरस उप्पत्तिया बुद्धी ॥ ततिओ-विट्ठे विक्खरइ काओ, भागवओ खुड्डगं पुच्छ किं कागो विक्खरइ ?, सो भणइ-एस चिंतेति किं एत्थ विण्डू अस्थि नत्थित्ति ?, खुड्डगस्स उप्पत्तिया बुद्धी ॥ उच्चारे - धिजाइयस्स भज्जा तरुणी गामंतरं निजमाणी धुत्तेण समं संपलग्गा, गामे ववहारो, विभत्ताणि भाष्यं [ १५१...] विलय, विरेचनं दध्युत्लो जातः वेदस्य औत्पत्तिकी बुद्धिः ॥ द्वितीयः सरः- भिक्षुकः पृष्टः एष किं शीपं चालयति ?, स भणतिकिं भिक्षु भिक्षुकी वा ?, कस्योत्पत्तिकी बुद्धिः ॥ काकः- तञ्चनीकेन तरुः पृष्टः- आर्हताः सर्वज्ञाः १, बाई, किषन्त द्र काका: ?, 'पष्टिः काकसहसा ये चेन्नातटे परिवसन्ति यदि न्यूमाः प्रोषिता अभ्यधिकाः प्राचूर्णका आायाताः ॥ १ ॥ कस्योत्पत्तिकी बुद्धिः । द्वितीयो वणिकू निधी टष्टे महिलां परीक्षतेरहस्यं विभर्त्ति नवेति, स भणति श्वेतः मम काकोऽधिष्ठाने प्रविष्टः, तथा सखीनां कथितं यावद्राज्ञा श्रुतं पृष्टः कथितं राज्ञा तस्मै अर्पितः मन्त्री च नियुक्तः, एतस्योत्पत्तिकी बुद्धिः ॥ तृतीयः विष्टां विकिरति काकः, भागवतः शुलके पृच्छति किं काको विकिरति ?, स भगति एष चिन्तयति-किमत्र विष्णुरति नास्तीति, शुकस्योत्पत्तिकी बुद्धिः ॥ उचारः चिग्जातीयख भार्या तरुणी ग्रामान्तरं नीयमाना पूर्वेन समं संता ग्रामे व्यवहारः, विभक्ती For Parts Only ~840~ www.janbrary.org मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [०१] “आवश्यक मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचित वृत्तिः
SR No.004141
Book TitleAagam 40 AAVASHYAK Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages1736
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size374 MB
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