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________________ आगम “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [-], मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [३०२], भाष्यं [३०...], (४०) * प्रत सूत्राक *** छउमत्वकालमित्तो सोहेज सेसओ उ जिणकालो । सच्याउअंपि इत्तो उसभाईणं निसामेह ॥ ३०२॥ चउरासीइ १ बिसत्तरि २ सही ३ पण्णासमेव ४ लक्खाई। चत्ता ५ तीसा ६ वीसा ७ दस ८ दो ९ एग १० च पुब्वाणं ।। ३०॥ चउरासीई ११ यावत्तरी १२ अ सट्ठी १३ अ होइ वासाणं। तीसा १४ च दस १५ य एर्ग १६ च एवमेए सयसहस्सा ॥३०४॥ पंचाणउह सहस्सा १७ चउरासीहें अ१८ पंचवण्णा १९य। तीसा २० य दस २१ य एग २२ सयं २३ च यावत्तरी २४ चेव २०॥ ३०५ ॥ प्रा एताच एकोनत्रिंशदपिगाथाः सूत्रसिद्धा एव द्रष्टव्या इति । गतं पर्यायद्वारम्, इदानीमन्तक्रियाद्वारावसर इति, तत्रान्ते |क्रिया अन्तक्रिया-निर्वाणलक्षणा, सा कस्य केन तपसा क जाता, वाशब्दात्कियत्परिवृतस्य चेत्येतत्प्रतिपादयन्नाहहा निव्वाणमंतकिरिआ सा चउदसमेण पदमनाहस्स । सेसाण मासिएक वीरजिर्णिदस्स छदेणं ॥ ३०६॥ अहावयचंपुखितपावासम्मेअसेलसिहरेसुं । उसभ वसुपुज्ज नेमी वीरो सेसा य सिद्धिगया ॥ ३०७ ।। Wएगो भयर्व वीरो तित्तीसाइ सह निव्वुओ पासो । छत्तीसरहिं पंचर्हि सएहि नेमी उ सिडिगओ ॥३०८ ॥ पंचहि समणसएहिं मल्ली संती उनसएहिं तु । अठ्ठसएणं धम्मो सएहि छहि वासुपुज्जजिणो ॥ ३०९॥ सत्तसहस्साणतइजिणस्स विमलस्स छस्सहस्साई। पंचसयाइ सुपासे पउमाभे तिणि अह सपा ॥३१॥ * दीप अनुक्रम JABERatinintamational Siwanmitrary.org मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [४०], मलसूत्र - [१] "आवश्यक' मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचित वृत्ति ~ 286~
SR No.004141
Book TitleAagam 40 AAVASHYAK Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages1736
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size374 MB
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