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आगम
“आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [-], मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२०७...], भाष्यं [२४],
(४०)
आवश्यक
|हारिभद्री
यवृत्तिः विभागः१
॥१३॥
प्रत
सुत्रांक
KARACES
दछु कर्य विवाहं जिणस्स लोगोऽवि काउमारद्धो ३३ ॥ गुरुदत्तिआ य कण्णा परिणिज्जते तओ पायं ॥ २४ ॥ त्तिव्य दाणमुसभं दितं दई जणमिवि पवत्तं। जिणभिक्खादाणंपि हु, दई भिक्खा पवत्ताओ ३४ ॥२५॥ मडयं मयस्स देहो तं मरुदेवीह पदमसिद्धत्ति । देवेहि पुरा महिअं३५ झावणया अग्गिसकारो॥२६॥ सो जिणदेहाईणं देवेहि कओ ३६ चिआसु थूभाई ३७ । सद्दो अरुपणसद्दो लोगोऽवि तओतहा पगओ ३८ ॥२७॥ छेलावणमुकिट्ठाइ बालकीलावणं व सेंटाई ३९। इंखिणिआइ रु वा पुच्छा पुण किं कह कर्ज ॥२८॥ अहव निमित्ताईणं सुहसइआइ सुहदुक्खपुच्छा वा ४० इचेवमाइ पाएणुप्पन्नं उसभकालंमि ॥२९॥ किंचिच (त्थ) भरहकाले कुलगरकालेऽवि किंचि उप्पन्नं । पहुणा य देसिआई सब्वकलासिप्पकम्माई ।। ३० ।। (भाष्यम्)
दीप
अनुक्रम
॥१३३॥
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचित वृत्ति
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