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आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
दीप
अनुक्रम
[६२]
आवश्यक
हारिभ
द्वीया
॥७९८ ॥
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आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (मूलं+निर्युक्ति:+वृत्ति:)
अध्ययनं [५], मूलं [सू.] / [गाथा-], निर्युक्ति: [ १५४७ ] भाष्यं [ २३६...],
'ged संतिय गुरुणो' गाहा प्रकटार्थी ॥। १५४४ ॥ 'चउरंगुल'त्ति चत्तारि अंगुलाणि पायाणं अंतरं करेयवं, मुहपोत्तिं ४५कायोत्स'उजुरत्ति दाहिणहत्थेण मुहपोत्तिया घेत्तवा, डब्बहत्थे रयहरणं काय, एतेण विहिणा 'वोसचत्त देहो'त्ति पूर्ववत्, काउस्सगं करिज्जाहित्ति गाथार्थः ॥ १५४५ ॥ गतं विधिद्वारम् अधुना दोषावसरः, तत्रेदं गाथाद्वयं 'घोडगे' त्यादि -
गय० कायोत्सर्गदोषाः
आमुच विसमपायं गायं ठावितु ठाइ उस्सगे । कंपइ काउस्सगे लयव खरपवणसंगेणं ॥ १ ॥ खंभे वा कुड्डे वां अवठभिय ठाइ काउसम्मगं तु । माले य उत्तमंगं अवरंभिय ठाइ उत्सर्ग ॥ २ ॥ सवरी वसणविरहिया करेहि सागारियं जह ठवेइ। ठड्ऊण गुज्झदेसं करेहि तो कुणइ उस्सगं ॥ ३ ॥ श्रवणामिउत्तमंगो काउस्सगं जहा कुलबहुन्न । निबलियओविव चलणे वित्थरिय अहव मेलविडं || ४ || काऊण चौलपट्ट | अविधीए नाभिगंडलस्सुवरिं । हिट्ठा य जाणुमित्तं चिट्ठई लंबुत्तरस्सगं ॥ ५ ॥ उच्छाईऊण य थणे चोलगपट्टण ठाइ उस्सगं । साइरक्खणडा * अहवा अन्नाणोसेणं || ६ || मेलित्तु पहियाओ चलणे वित्थारिऊण बाहिरओ । ठाउस्सगं एसो बाहिरउद्धी मुणेयच्वो ॥ ७ ॥ अंगुट्टे मेलविडं ४ विस्थारिय पहियाओ बाहिं तु । ठाउस्सगं एसो भणिओ अमितरुद्धिति ॥ ८ ॥ कप्पं वा पट्टे वा पाइणि संजइव्व उस्सगं । ठाइ य खलिणं व जहा रयहरणं अगओ काउं ||१९|| मामेइ तहा दिहिं चलचितो वायसुन्न उस्सगे । छप्पड़आग भएणं कुणई अ पट्ट कवि व ॥ १० ॥ सीसं पंकपमाणो जक्रखाइगुव्व कुणइ उस्सग्गं । मूयव्व हुअहुअंतो तहेब छिज्जतमाई ॥ ११ ॥ अंगुलिममुहाओवि य चालतो तहय कुणइ उस्सगं आलावगगणणा संठवणत्थं च जोगाणं ॥ १२ ॥ काउस्सममि ठिओ सुरा जह बुडबुडे जव्वतं । अणुपेहंतो तह वानरुव्व चाले ओट्टउडे || १३ ॥ एए काउस्समां कुणमाणेण विबुहेण दोसा उ । सम्मं परिहरियन्या जिणपडिकुडचिकाकणं ॥ १४ ॥ 'नाभीकरयलकुप्पर उस्सारे पारियंमि इति नियुक्तिगाथाशकलं लेशतोऽदुष्टकायोत्सर्गाव स्थान प्रदर्शनपरं विध्य
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचित वृत्तिः कायोत्सर्ग-संबंधी दोषाणां वर्णनं