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________________ आगम आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययन [४], मूलं [सू.] / [गाथा-], नियुक्ति: [१३७१] भाष्यं [२२३...], (४०) प्रत सूत्रांक [सू.] k आवश्यक-दावा दियविसओ 'दिसत्ति दिसामोहो दिसाओ वा तारगाओ वा न दीसंति वासं या पडह, असझाइयं वा जाय तो प्रतिक हारिभकालवहोत्ति गाथार्थः ॥ १३७१ ॥ किं च मणाध्य० द्रीया जह पुण गछताणं छीर्य जोई ततो नियत्तेति । निब्वाघाए दोषिण उ अच्छंति दिसा निरिक्वंता ॥ १३७२।। | अस्वाध्या| व्याख्या-तेसिं चेव गुरुसमीवा कालभूमी गच्छंताणं अंतरे जइ छीतं जोति वा फुसइ तो नियतंति । एवमाइका यकनियु७४७|| तो कालकारणेहिं अबाहया ते दोवि निवाघाएण कालभूमी गया, संडासगादिविहीए पमजित्ता निसन्ना उद्धठिया वा एकेको दो| ग्रहविधिः दिसाओ निरिक्खंतो अच्छइत्ति गाथाथैः ॥ १३७२ ।। किं च-तत्थ कालभूमिए ठिया सझायमर्चितंता कणगं दद्दण पडिनियत्तंति । पत्ते य दंडधारी मा बोलं गंडए उवमा ॥१३७३ ।। व्याख्या-तत्थ सम्झायं (अ) करेंता अच्छन्ति, कालवेलं च पडियरेइ, जइ गिम्हे तिणि सिसिरे पंच वासासु सत्त कणगारति (पडति) पेच्छेज तहा विनियतंति, अह निषाघाएणं पत्ता काल गणवेला ताहे जो दंडधारी सो अंतो पविसित्ता | भणइ-बहुपडिपुण्णा कालवेला मा बोलं करेह, एत्थ गंडगोवमा पुषभणिया कज्जइत्ति गाथार्थः ॥ १३७३ ।। नियविषयो दिगिति दिग्मोहो दिशो या तारका वान श्यन्ते वर्षा वा पतति अखाध्यापिकंपा जातं तर्हि कालवधः । तयोरेव गुरुसमीपात् कालभूमि गच्छतोरन्तरा यदि क्षुतं ज्योतिवां स्पृशति तदा निवते, एवमादिकारणरम्याहती तो हावपि नियोधातेन कालभूमि गती संदंशकादिविधिना प्रमज्य A७४७॥ विषण्णी स्थिती वा एकको विी निरीक्षमाणमिति, तन कालभूमौ स्थिती । तन्न स्वाध्यायं कुर्वती तिष्ठतः कालवेलां च प्रतिचरतः, यदि ग्रीष्मे । त्रीन् शिशिरे पन्न वर्षाम् सप्त कणकान् पश्येतां पततस्तदा विनिवर्तेते, अथ नियाधातेन प्राप्ता कालग्रहणवेला तदा यो दण्डधरः सोऽन्तः प्रविश्य भगतिबहुप्रतिपूर्णा कालवेला मा बोलं कुरुत, अत्र गण्डकोपमा पूर्वभाषिता क्रियते । R दीप अनुक्रम [२९] S ~1497~
SR No.004141
Book TitleAagam 40 AAVASHYAK Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages1736
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size374 MB
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