SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1373
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययन [४], मूलं [सू.] / [गाथा-], नियुक्ति: [१२८४] भाष्यं [२०६...], (४०) प्रत सूत्रांक [सू.] मरिजा अमरिसिओ भणइ-मारिजउ, ताहे इंगालखड्डा कया, ताहे सेयणओ ओहिणा पेच्छह न वोलेह खड़, कुमारा भणंतिता निमित्तं इमं आवई पत्ता तोषि निच्छसि', ताहे सेयणएण खंधाओ ओयारिया, सो य ताए खडाए पडिओ मओ रयणप्पहाए नेरइओ उववष्णो, तेवि कुमारा सामिस्स सीसत्ति बोसिरंति देवयाए साहरिया जत्थ| भयवं तित्थयरो विहरइ, तहवि णयरी न पडइ, कोणियस्स चिंता, ताहे कूलवालगस्स रुहा देवया आगासे भणइ|'समणे जइ कूलवालए मागहियं गणियं लगेहिती । लाया य असोगर्चदए, वेसालिं नगरि गहिस्सइ ॥१॥सुणेतओ४ चेव चपं गओ कूलवालय पुरुछा, कहियं, मागहिया सद्दाविया विडसाविया जाया, पहाविया, का तीसे उप्पत्ती जहा णमोकारे पारिणामियबुद्धीए थूभेत्ति-'सिद्धसिलायलगमणं खुड्डगसिललोहणा य विक्खंभो । सावो मिच्छावाइत्ति| |निग्गओ कुलचालतवो ॥१॥ तायसपाली नइवारणं च कोहे य कोणिए कहणं । मागहिगमणं बंदण मोदगअइसार| मात, अपितो भणति-मार्यता, तदाकारगा कृता, तदा सेचनकोऽवधिना पश्यति, नातिकामति गती, कुमारी भणत: तब निमिपार्मिषमापतिः प्राप्ता समापि नेपासि, सदा सेचनफेन स्कन्धादयतारिती, स प तस्यां गायो पतितो मृतो रसप्रभायो नैरपिक जापाः, तावपि कुमारी स्वामिनः लाशिष्याविति प्रमजन्ती देवतया संहतो यन्त्र भगवान् सीकरी विहरति, तथापि भणति-धमणः कूलवालको यदि मागधिका वेश्यां सगियति । राजा पाशोकचन्दो वैशाली नगरी महीव्यति ॥ ॥ ध्वमेव चम्पां गतः कूलवालक पृच्छति, कथितं, मागधिका शब्दिता विश्रानिका जाता, प्रथापिता, का तथा उत्पत्तियथा नमस्कारे पारिणामिकीवुद्धी स्तूप इति, सिद्धशिलासहगमनं दुखकेन शिलालोहनं च विकम्भः (पादप्रसारिका)माणे मिथ्यावादीति निर्गतः फूलपालकतपः ॥1॥ तापसपली नदीवारणं च कोधे कोणिकाय (देवतया) कथितं । मायधिकागमनं वन्दनं मोदकाः भत्तीसारः दीप अनुक्रम [२६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [०१] “आवश्यक" मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचित वृत्ति: ~1372~
SR No.004141
Book TitleAagam 40 AAVASHYAK Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages1736
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size374 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy