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________________ आगम आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्तिः ) अध्ययन [४], मूलं [सू.] / [गाथा-], नियुक्ति: [१२७१...] भाष्यं [२०४...], (४०) प्रत सूत्रांक [सू.] इत्येवमादि, एवं हीणाइरित्तदसणं, तबइरित्तदसणं नास्त्येवाऽऽत्माऽऽत्मीयो वा भावः नास्त्ययं लोक न परलोकः असत्स्वभावाः सर्वभावा इत्येवमादि, अपञ्चक्खाणकिरिया अविरतानामेव, तेषां न किञ्चिदूविरतिर(तम)स्ति, सा दुविहाजीवअपञ्चक्खाणकिरिया अजीवऽपञ्चक्खाणकिरिया य, न केसुइ जीवेसु अजीवेमु य वा विरती अथिति ५, दिडिया किरिया दुविहा, तंजहा-जीवदिठिया य अजीवदिट्ठीया य, जीवदिट्ठीया आसाईणं चक्खुदंसणवत्तियाए गच्छइ, अजीवदिछिया चित्तकम्माईणं ६, पुठिया किरिया दुविहा पण्णत्ता-जीवपुठिया अजीवपुछिया य, जीवछिया जा जीवाहियार पुच्छइ रागेण वा दोसेण वा, अजीवाहिगार वा, अहवा पुछियत्ति फरिसणकिरिया, तत्थ जीवफरिसणकिरिया इत्थी पुरिस नपुंसगं वा स्पृशति, संघट्टेइत्ति भणिय होइ, अजीवेसु सुहनिमित्तं मियलोमाइ वत्थजायं मोत्तिगादि वा रयणजार्य स्पृशति ७, पाडुच्चिया किरिया दुविहा-जीवपाडुच्चिया अजीवपाडुचिया य, जीवं पडुच जो बंधो सा जीवपाडुच्चिया, |जो पुण अजीव पडुच्च रागदोसुम्भवो सा अजीवपाडुचिया ८, सामंतोषणिवाइया समन्तादनुपततीति सामंतोवणिवाइया एवं हीनातिरिक्तदर्शनं, तब्यतिरिक्तदर्शन, अप्रत्याश्यामकिपा-सा द्विविधा जीवाप्रत्याख्यान किपा अजीवाप्रत्याख्यानकिया च, न केषुचिनीचेषु भजीवेषु च वा विरतिरतीति, दृष्टिजा फिया द्विविधा, नवधा-जीवष्टिया व अजीवष्टिनाच, जीपष्टिका अनादीनां चक्षुदर्शन प्रत्ययाय गच्छति, अजीवष्टिला साचित्रकर्मादीना, प्राधिकी, पृष्टिजा क्रिया द्विविधा प्रामा-जीवानिकी अजीवानिकी च, जीवानिकी या जीवाधिकार पश्यति राम्गेण वा द्वेषेण या, अणीनवाधिकार वा, अथवा स्पृष्टिजेति स्पर्मनक्रिया, तत्र जीवस्पर्शन क्रिया खिवं पुरुष नपुंसक संवठ्ठपतीति भणितं भवति, मजीयेषु सुखनि मिचं मृगकोमावि वनजातं मौक्तिकादि वा रखजातं, प्रानी विकी किया द्विविधा-जीवनातीयिकी अजीचप्राचीस्यिकी च, जीवं प्रतीत्य यो बन्धः सा जीवमातीत्यिकी, यः पुनरजीचं दिमतीत्य समझेपोजवा साजीवमातीखिकी, सामन्तोपनिपातिकी-सामन्तोपनिपातिकी 3929.MARALES दीप अनुक्रम [२२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] “आवश्यक" मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचित वृत्ति: ~1228~
SR No.004141
Book TitleAagam 40 AAVASHYAK Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages1736
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size374 MB
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