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आगम
(१८)
“जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः ) वक्षस्कार [७], -----
---- मूलं [१३४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१८], उपांग सूत्र - [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
[१३४]
दीप अनुक्रम [२५९]
एणं निक्षममाणे सूरिए तगाणंतराओ मंडलाओ तयाणतरं मंडलं संकममाणे दो दो एगविभागमुहुत्तेहिं मंडले दिवसखित्तस्स निम्बुद्धगाणे २ रवणिखिस्स अभिवद्धेमाणे २ सबवाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चार चरइति, जया णं सूरिए सबभतराओ मंडलाओ सबबाहिर मंडलं उपसंकमित्ता चार चरइ तथा णं सबभतरमंडलं पणिहाय एगेणं तेसीएणं राइंदिअसणं तिणि छावढे एगसद्विभागगुहुत्तसए दिवसखेत्तरस निम्बुद्धत्ता रयणिखेत्तस्स अमिबुद्धत्ता चार चरइत्ति, जया गं भंते ! सूरिए सव्ववाहिर मंडलं उपसंकमित्ता चार परइ तया गं केमहालए दिवसे केमहालिया राई भवइ ?, गोअमा! तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उफोसिआ अट्ठारसमुहत्ता राई भवइ जहण्णए दुवालसमुहुते दिवसे भवइत्ति, एस णं पढमे छम्मासे एस णे पढमस्स छम्मासस्स पजवसाणे । से 4बिसमाणे सूरिए दोचं छम्मासं अयमाणे पढ़मंसि अहोरत्तैसि वाहिराणंतर मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरा, जया णं भंते ! सूरिए बाहिराणंतर मंडलं उवसंकमित्ता चार चरइ तया णं केमहालए दिवसे भवइ केमहालिया राई भवइ ?, गो० ! अट्ठारसमुहत्ता राई भवइ दोहिं एगसहिनागमुहुत्तेहिं ऊणा दुवालसमूहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगसहिभागमूहुत्तेहिं अहिए, से पविसमाणे सूरिए दोमंसि अहोर तसि पाहिरतवं मंडलं उवसंकमित्ता चार चरइ, जया णं भंते | सूरिए वाहिरतचं मंडलं उपसंकमित्ता चार परद तया णं केमहालए दिवसे भवइ केमहालियां राई भवइ, गो० ! तया णं अट्ठारसमहुत्ता राई भवइ चाहिं एगसहिभागमुहुत्तेहिं ऊणा दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ चाहिं एगसट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिए इति, एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे सूरिए त. याणतराओ मंडलाओ तयाणतर मंडलं संकममाणे संकममाणे दो दो एगसठिमागमुहुत्तेहिं एगमेगे मंडले रयणिखेत्तस्स निबुद्धेमाणे २ दिवसखेत्तरस अभिबुद्धेमाणे २ सव्वन्भतरं मंडलं उबसंकमित्ता चारं परत्ति, जया ण भंते ! सूरिए सम्वयाहिराओ मंडलाओ
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