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________________ आगम (१८) प्रत सूत्रांक [ ५३ ] दीप अनुक्रम [66] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति उपांगसूत्र - ७ (मूलं + वृत्तिः) श्रीजम्बूद्वीपशान्तिचन्द्री - या वृतिः ॥२२२॥ वक्षस्कार [३], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... ....आगमसूत्र [१८], उपांग सूत्र [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्तिः मूलं [ ५३ ] - ........................... तलवरमावि जाव सत्थवाहप्पभियओ अप्पेगइआ उप्पलहत्थगया जाव सुसेणं सेणावई पिओ २ अणुगच्छति, तए णं तस्स सुसेणस्स सेणावइरस बहूईओ खुजाओ चिलाइआओ जाव इंगिअचितिपत्थिभविआणिआड णिउणकुसलाओ विणीआओ अप्पेआओ कलसहत्थगयाओ जाब अणुगच्छंतीति । तए णं से सुसेणे सेणावई सम्बिद्धीए सब्बजुई जाव विग्घोसणाइएवं जेणेव तिमिसगुहाए दाहिणिस्स दुधारस्स कवाडा तेणेव उवागच्छइ२त्ता आलोए पणामं करेइ२त्ता ढोमहत्यगं परामुसहरत्ता तिमिसगुहाए दाहिणिस्स दुवारस्स कवाडे लोमहत्येणं पमाइ २ चा दिव्वाए उद्गधाराए अन्भुक्खेइ २ ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचगुलितले चषण दल २ ता अमोहिं बरेहिं गंधेहि अ महेहि अ अचिणे २ त्ता पुष्फारुहणं जाव त्यारुणं करेइ २ ता आसत्तोसत्तविपुलवट्ट जान करेइ २ त्ता अच्छेहिं सहेहिं रययामपहिं अच्छरसातंडुलेहिं तिमिस्सगुद्दाए दाहिणिस्स दुबारस्स कबाडा पुरओ अट्ठमंगलए आलिहइ तं०-सोत्थिय सिरिवच्छ जाव कयग्गहगकिरयलपब्भट्ट चंदप्पभवइरवे रुलि अनिमलदंड जान धूर्व दलय २ वामं जाणुं अंचे २ ता करयल जान मत्थए अंजलि कट्टु कवाडाणं पणामं करे २ त्ता दंडरवणं परामुसद्द, तप णं तं दंडरयणं पंचलइअं बइरसारमइअं विणासणं सङ्घसत्तुसेण्णाणं खंधावारे णरवद्दस्स गडदरिविसमपन्भारगि रिवरपवायाणं समीकरणं संतिकरं सुभकरं हितकरं रण्णो हिअइच्छिअमणोरहपूरगं दिवमप्पडियं दंडरयणं गद्दाय सत्तट्ट पयाई पथोसकर पचोतकित्ता तिमिस्सगुहाए दाहिणिस्स दुवारस्स कवाडे दंडरयणेणं महया २ सदेणं तिक्खुत्तो आउडेर तए णं तिमिसगुहाए दाहिणिस्स दुवारस्स कवाडा सुसेणसेणावरणा दंडरवणेणं महया २ सद्देणं तिलुत्तो आउडिआ समाणा महया २ स देणं कोंचार करेमाणा सरसरस्स सगाई २ ठाणाई पश्चोतकित्था, तप णं से सुसेणे सेणावई तिमिसगुहाए दाहिणिहस्स For Evate & Pune Cy ~ 447 ~ सुषेणेन तिमिश्रगुहादक्षिणकपाटोदा टस. ५३ ॥२२२॥
SR No.004118
Book TitleAagam 18 JAMBUDWIP PRAGYPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1097
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size264 MB
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