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आगम
(१८)
“जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) वक्षस्कार [२], ----
--------- मूलं [१९R] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [१८], उपांग सूत्र - [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [१९R]
श्रीजम्यू-18 द्वीपना-1 न्तिचन्द्रीया वृचिः हा
२वक्षस्कारे सुपमसुषमाधिकारः मू.१९
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॥९
॥
गाथा:
वासे बहवे पहाला कुदाला मुराला कयमाला णट्टमाला दंतमाला नागमाला सिंगमाला संखमाला सेअमाला णामं दुमगणा पण्णता. कुसविकसविसुबाक्समूला मूलमंतो कंदमंतो जाव बीअमंतो पत्तेहि भ पुप्फेहि अ फलेहि अ उच्छष्णपरिच्छण्णा सिरीए आईव २ उक्सोमेमाणा चिट्ठति, तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ तत्थं वहये भेरुतालवणाई हेरुतालवणाई मेहतालवणाई पभवालवणाई सालवणाई सरलवणाई सत्तिवण्णवण्णाई पूअफलिवणाई खजूरीवणाई णालिएरीवणाई कुसविफुसपिसुखरुक्खमूलाई जाव चिट्ठति, तीसे णं समाए भरहे वासे तत्व तत्थ बहने सेरिमागुम्मा णोमालिआगुम्मा कोरंटयगुम्मा बंधुजीवगगुम्मा मणोजगुम्मा बीअगुम्मा बाणगुम्मा कणारगुम्मा कुन्जायगुम्मा सिंदुवारगुम्मा मोमारगुम्मा जूहिआगुम्मा मल्लिागुम्मा वासंतिभागुम्मा बत्थुलगुम्मा करयुलगुस्मा सेवालगुम्मा अगत्यिगुम्मा मगदतिमागुम्मा चंपकगुम्मा जातीगुम्मा णवणीइआगुम्मा कुंवगुम्मा महाजाइगुम्मा रम्मा महामेहणिकुश्वभूभा दसवणं कुसुमं कुसुमति जे णं भरहे वासे बहुसमरमणिजं भूमिभार्ग वायविधुअग्णसाला मुक्कपुष्फपुंजोक्यारकलियं करति, तीसे गं समाए भरहे वासे तत्थ तहिं तहिं बहुइओ पउमलयाओ जाव सामलयाओ णिचं कुसुमिआओ जाव लयावण्णमओ, तीसे समाए भरहे वासे तत्व २ तहिं २ बहुइओ वणराइओ पण्णत्ताओ किण्हाओ किण्होभासाओ जाक मणोइराओ रयमत्तगछप्पयकोरगभिंगारगकोंडलगजीवंजीवगनंदीमहकविलपिंगलक्खगकारंडवचक्कवायगकलईसहंससारसमणेगसउणगणमिहुणविभरिमामो सहुणइयमहुरसरणाइनाओ संपिंढि णाणाधिहगुच्छ० चावीपुक्खरणीदीहिआसु असुणि विचित्त० अभि० साउन्त० णिरोगक० समोउअपुष्फफलसमिद्धाओ पिंडिमजावपासादीआओ ४, (सूत्रं १९)
दीप अनुक्रम [२७-३२]
॥९७॥
मूल-संपादकस्य मुद्रण-शुद्धि-स्खलनत्वात् अत्र सूत्रस्य क्रम १९ द्वि-वारान् मुद्रितं
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