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________________ आगम (१७) "चन्द्रप्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-६ (मूलं+वृत्तिः ) प्राभृत [२०], ----- --------- प्राभूतप्राभृत [-], -------------------- मूलं [१०५R-१०६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१७], उपांग सूत्र - [६] “चन्द्रप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक सूर्यप्रजप्तिवृत्तिः (मल०) ॥२९॥ [१०५R - -१०६] तारारूपाणां देवानां कामभोगाः, तेभ्योऽप्यनन्तगुणविशिष्ट तराः कामभोगाः चन्द्रसूर्याणां, एतादृशान् चन्द्रसूर्या ज्योति- २० प्राभूते पन्द्रा ज्योतिपराजाः कामभोगान् प्रत्यनुभवन्तो विहरन्ति । सम्मति पूर्वमष्टाशीतिसशक्षाग्रहा उक्तास्तान् नाममाहमुप- अष्ट्राशीतिदिदर्शयिषुराह गुहा तस्य स्खलु इमे अट्ठासीती महम्गहा पं०, तं०-इंगालए वियालए लोहितके सणिकछरे आहणिए पाहणिए १०७ कणो कणए कणकणए कणविताणए १०कणगसंताणे सोमे सहिते अस्सासणो कजोवए कवरए अपकरए दुईभए संखे संखणाभे २० संखवणाभे कसे कसणाभे कंसवण्णाभे गीले णीलोभासे रुप्पे रुप्पोभासे भासे । |भासरासी ३० तिले तिलपुष्पवणे दगे दगवणे काये बंधे इंदग्गी धूमकेतू हरी पिंगलए ४० बुधे सुके यह-1।। |स्सती राह अगस्थी माणवए कामफासे धुरे पमुहे वियडे५० विसंधिकप्पेल्लए पहले जडियालए अरुणे अग्गिल्लए। काले महाकाले सोस्थिए सोवस्थिए बदमाणगे ६० पलंबे णिचालोए णिचजोते सयंपभे ओभासे सेयंकरे खेमकरे। आभंकरे पभंकरे अरए ७० विरए भसोगे वीतसोगे य विमले विवसे विवत्थे विसाल साले सुपते अणियट्टी एगजडी८०नुजडी कर करिए राषऽग्गले पुप्फकेतू भाव केतू, संगहणी-इंगालए विद्यालए लोहितके सणिकछरे । चेव । आहुणिए पाहुणिए कणकसणामावि पंचेच ॥१॥ सोमे सहिते अस्सासणे य कजोबए य कबरए। २९४॥ |अयकरए दुंदुभए संलसणामावि तिण्णेव ॥ २॥ तिनेव कंसणामा णीले रुप्पी य हुंति चत्तारि। भास तिल पुष्करपणे दगवणे काल बंधे य ॥ ३ ॥ इंदग्गी धूमकेतू हरि पिंगलए बुधे य सुके य । वहसति राहु अगस्थी - दीप अनुक्रम [२००-२०१] OCO-NCC-- ~595~
SR No.004117
Book TitleAagam 17 CHANDRA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages602
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_chandrapragnapti
File Size129 MB
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