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________________ आगम (१७) "चन्द्रप्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-६ (मूलं+वृत्ति:) प्राभृत [१३], ------------------- प्राभृतप्राभृत [-], --------------------- मूलं [८१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१७], उपांग सूत्र - [६] "चन्द्रप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सुत्रांक [८१] 462525-25% दीप अनुक्रम [११३] अद्धमंडलस्स सत्तविभागं च एकतीसधा छेत्ता अट्ठारस भागाई, ता तच्चायणगते चंदे पञ्चस्थिमाते भागाए पषिसमाणे पाहिराणतरस्स पचत्धिमिल्लरस अचमंडलस्स ईतालीसं सत्तविभागाई जाई चंदे अप्पणो परस्सXI पचिपणं पहिचरति, तेरस सत्सद्विभागाइं जाई चंदे परस्स चिपणं पडिचरति, तेरस सत्तविभागाई चंदे अप्पजो परस्स चिपणं पडिचरति, एतावयाव बाहिराणंतरे पञ्चस्थिमिल्ले अद्धमंडले सम्मत्ते भवति, तचायणगते । चंदे पुरच्छिमाए भागाए पविसमाणे बाहिरतचस्स पुरच्छिमिल्लस्स अमंडलस्स ईतालीसं सत्तविभागाई जाई चंदे अप्पणो परस्स चिणं पडियरति, तेरस सत्तद्विभागाई जाई चंदे परस्स चिणं पहिचरति, तेरस सत्तविभागाइं जाई चंदे अप्पणो परस्स प चिपणं पडियरति, एतावताव बाहिरतचे पुरच्छिमिल्ले अद्धमंडले सम्मत्ते भवति, ता तचायणगते चंदे पश्चस्थिमाते भागाते पविसमाणे माहिरचउत्थस्स पचस्थिमिल्लस्स अद्धमं-| उलस्स अरससटिभागाई सत्तविभागं च एकतीसधा छेत्सा अट्ठारस भागाई जाई चंदे अप्पणो परस्स य[// चिपणं पहियरति, एतावताच बाहिरचउत्थपचत्धिमिल्ले अनमंडले सम्मत्ते भवद । एवं खलु चंदेणं मासेणं चंदे तेरस चप्पण्णगाई दुवे तेरसगाई जाई चंदे परस्स चिपणं पडिचरति, तेरस २ गाई जाई चंदे अप्पणो |चिपणं परियरति, दुषे ईतालीसगाई अट्ट सत्तविभागाई सत्तविभागं च एकतीसधा ऐत्ता अट्ठारसभागाई |जाई चंदे अप्पणो परस्स य चिणं पहिचरति, अवराई खलु दुवे तेरसगाई जाई चंदे केणइ अस्सामन्नगाई * ~ 482~
SR No.004117
Book TitleAagam 17 CHANDRA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages602
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_chandrapragnapti
File Size129 MB
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