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________________ आगम (१७) चन्द्रप्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) प्राभृत [१], -------------------- प्राभृतप्राभृत [१], -------------------- मूलं [११] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१७], उपांग सूत्र - [६] "चन्द्रप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: सूर्यप्रज्ञ- प्तिवृत्तिः (मल.) प्रत सूत्रांक [११] ॥१२॥ 2 ENSEX 9 दोसि अहोरसि बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चार चरति, ता जया णं सूरिए बाहिरं तचं मंडलं उव-४१माभृते संकमित्ता चारं चरति तदा णं अट्ठारसमुहत्ता राती भवति च रहिं एगहिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवति चाहिं एगहिभागमुहुत्तेहिं अहिए। एवं खलु एतेणुवाएणं पविसमाणे सूरिए तदाणं-12 प्राभृत तरातो तयाणंतर मंडलातो मंडलं संकममाणे दो दो एगविभागमुहत्ते एगमेगे मंडले रतणिखेत्तस्स णिबड़ेमाणे २ दिवसखेत्तस्स अभिवढेमाणे २ सयभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए सबबाहिराओ मंडलाओ सबभंतरं मंडलं जवसंकमित्ता चारं चरति तदा णं सववाहिरं मंडलं पणिधाय एगेणं तेसीएणं राइंदियसतेणं तिन्नि छावठे एगट्ठिभागमुहुत्तसते रयणिखेत्तस्स निवुद्वित्ता दिवसखेत्तस्स अभिवद्वित्ता चार चरति तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति, जहणिया दुवालस-13 मुहुत्ता राती भवति, एस णं दोचे छम्मासे एस णं दुच्चस्स छम्मासस्स पजवसाणे, एस णं आदिचे संवच्छरे एस णं आदिचस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे, इति खलु तस्सेवं आदिचस्स संवच्छरस्स सह अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति, सई अट्ठारसमुहत्ता राती भवति, सई दुवालसमुलुत्ता राती भवति, पढमे छम्मासे अस्थि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे अस्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे नस्थि दुवालसमुहुत्ता राई अस्थि दुवालसमुहूत्ता राई नस्थि दुवालसमुहत्ते दिवसे भवति, पढमे वा उम्मासे णत्थि पण्णरसमुहत्ते दिवसे भवति, णत्थि पण्णरसमुहुत्ता दीप -0- 4 - अनुक्रम [२५] % ॥१२ ~31~
SR No.004117
Book TitleAagam 17 CHANDRA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages602
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_chandrapragnapti
File Size129 MB
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