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________________ आगम (१७) "चन्द्रप्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-६ (मूलं+वृत्तिः ) प्राभृत [१०], -------------------- प्राभृतप्राभृत [११], -------- ------- मूलं [४५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१७], उपांग सूत्र - [६] "चन्द्रप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [४५] साथि चंदमंडला जे णं सया णक्खत्तेहिं विरहिया, अस्थि चंदमंडला जे णं रविससिणक्खत्ताणं सामण्णा भवति, अस्थि मंडला जे णं सया आदिचेहिं विरहिया, ता एतेसि र्ण पण्णरसह चंदमंडलाणं कयरे चंदमंडला जे णं सता णक्खत्तेहिं अविरहिया, जाव कयरे चंदमंडला जे णं सदा आदिवविरसाहिता?, ता एतेसि णं पण्णरसण्हं चंदमंडलाणं तत्थ जे ते चंदमंडला जे णं सदा णक्खत्तेहिं अविरहिता तेणं अह, तं०-पढमे चंदमंडले ततिए चंदमंडले छ? चंदगडले सत्तमे चंदमंडले अट्ठमे चंदमंडले दसमे चंदमंडले एकादसे चंदमंडले पण्णरसमे चंदमंडले, तत्थ जे ते चंदमंडला जे णं सदा णक्खत्तेहिं विरहिया तेणं सत्त, तं-बितिए चंदमंडले चउत्थे चंदमंडले पंचमे चंदमंडले नवमे चंदमंडले बारसमे चंदमंडले तेरसमे चंदमंडले चउद्दसमे चंदमंडले, तत्थ जे ते चंदमंडले जे णं ससिरविनक्खताणं समाणा भवंति, ते नणं चत्तारि, तंजहा-पढमे चंदमंडले बीए चंदमंडले इक्कारसमे चंदमंडले पारसमे चंदमंडले, तत्थ जेते| ४चंदमंडला जे णं सदा आदिवविरहिता ते णं पंच, तं०-छठे चंदमंडले सत्तमे चंदमंडले अट्ठमे चंदमंडले & नवमे चंदमंडले दसमे चंदमंडले, (सूत्र ४५) दसमस्स एक्कारसमं पाहुडपाहुई समत्तं ॥ | "ता कइ णमित्यादि, ता इति पूर्ववत् , कतिसङ्ख्यानि णमिति वाक्यालङ्कारे, चन्द्रमण्डलानि प्रज्ञप्तानि !, भगवानाह–ता पण्णरसे'त्यादि, ता इति प्राग्वत् , पञ्चदश चन्द्रमण्डलानि प्रज्ञप्तानि, तत्र पश्च चन्द्रमण्डलानि जम्बूद्वीपे शेषाणि च दश मण्डलानि लवणसमुद्रे, तथा चोक्तं "जंबूदीपप्रज्ञप्ती-'जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे केवइयं ओगाहिता केव-त दीप BARABARKESEAC अनुक्रम [१९] ~ 284~
SR No.004117
Book TitleAagam 17 CHANDRA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages602
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_chandrapragnapti
File Size129 MB
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