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________________ आगम (१६) प्रत सूत्रांक [२१] दीप अनुक्रम [३१] सूर्यप्रज्ञप्ति” - उपांगसूत्र - ५ ( मूलं + वृत्ति:) मूलं [२१] प्राभृत [२], प्राभृतप्राभृत [१], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित. आगमसूत्र [१६], उपांग सूत्र [५] "सूर्यप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि प्रणीत वृत्तिः सूर्यप्रज्ञपाओ सूरिए पुढविकासि उत्ति, एगे एव०५, एगे पुण एवमाहंसु ता पुरथिमिल्लाओ लोयंताओ पाओ तिवृत्तिः सूरिए आउकार्यसि उत्ति, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेह करेत्ता पचत्थिमंसि लोयतंसि पाओ (मल) * सूरिए आउकासि विद्धंसंति, एगे एवमाहंसु ६, एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरन्धिमातो लोगंतातो पाओ ॥ ४५ ॥ सूरिए आउकायंसि उत्तिइति, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेति २ सा पचत्थिमंसि लोयंतंसि सायं सूरिए आउकासि पविसह, पविसित्ता आहे पंडियागच्छति २ त्ता पुणरवि अवरभूपुरत्थिमातो लोयंतातो पादो * सूरिए आउकायंसि उत्तिद्वति, एगे एव० ७, एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरन्धिमातो लोयंताओ बहूई जोयगाई बहू जोयणसताई बहूई जोयणसहस्साइं उहुं दूरं उप्पतित्ता एत्थ णं पातो सूरिए आगासंसि उत्तिद्धति से णं इमं दाहिणहुं लोयं तिरियं करेति करेसा उत्तरडलोयं तमेव रातो, से णं इमं उत्तरद्वलोयं तिरियं करेइ २ सा दाहिणडलोयं तमेव राओ, से णं हमाई दाहिणुत्तरलोयाई तिरियं करेइ करिता पुरत्थिमाओ लोयंतातो बहूई जोयणाई बहुयाई जोयणसताई बहूई जोयणसहस्साइं उहुं दूरं उप्पतिता एत्थ णं पातो सूरिए आगासंसि उत्तिद्वति एगे एवमाहंसु ८ । वयं पुण एवं वयामो, ता जंबुद्दीवस्स २ पाईणपडीणायत ओदीणदाहिणायताएं जीवाए मंडल चरबीसेणं सतेणं छेत्ता दाहिणपुर- ४ ॥ ४५ ॥ च्छिसि उत्तरपञ्चत्थिमंसि य चउभागमंडलसि इमीसे रयणप्पभाष पुढवीए बहुसमरमणिजातो भूमिभागातो अट्ठ जोयणसताई उद्धं उत्पतिता एत्थ णं पादो दुबे सूरिया खसिद्धति, ते णं इमाई दाहिणुतराई For Penal Use Only २ प्राभृतः १ प्राभृत प्राभृतं ~ 95~
SR No.004116
Book TitleAagam 16 SOORYA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages600
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_suryapragnapti
File Size128 MB
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