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________________ आगम सूर्यप्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) (१६) प्राभत [२]. ......... .......--- प्राभतप्राभूत [१], ................... मूलं [२१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१६], उपांग सूत्र - [9] "सूर्यप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२१] तदेवमुक्तं प्रथमप्राभूत, सम्प्रति द्वितीय वक्तव्यं, तस्य चायमर्थाधिकारः 'कथं तिर्यक सूर्यः परिश्रमतीति ततस्तद्विषयं प्रश्नसूत्रमाह. ता कहं तेरिच्छगती आहिताति वदेजा, तत्थ खलु इमाओ अट्ठ पहिवत्तीओ पण्णताओ, तत्धेगे एवमा इंसु ता पुरच्छिमातोलोअंतातो पादोमरीची आगासंसि उत्तिति सेणं इमं लोयं तिरियं करेह तिरियं करेत्तापिचत्थिमंसि लोयंसि सायंमि रायं आगासंसि विद्धंसिस्संति एगे एवमाहेसु १, एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरच्छिमातो लोअंतातो पातो सूरिए आगासंसि उत्तिद्दति, से णं इमं तिरियं लोपं तिरियं करेति करित्ता पचत्धिर्मसि लोयंसि सरिए आगासंसि विडंसंति, एगे एवमाहंसु२, एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरत्थिमाओ लोयंतातो पादो मूरिए आगासंसि उत्तिट्ठति, से इमं तिरिय लोयं तिरिय करेति करित्ता पचत्थिमंसि लोयंसि सायं अहे पडियागच्छंति, अधे पडियागच्छेत्ता पुणरवि अवरभूपुरस्थिमातो लोयंतातो पातो सरिए आगासंसि उत्तिद्वति, एगे एबमाहंसु ३, एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरथिमाओ लोगंताओ पाओस् |रिए पुढविकायंसि उत्तिकृति, से णं इमं तिरियं लोयं तिरिय करेति करेसा पचत्थिमिल्लंसि लोयंतसि सायं सूरिए पुढविकार्यसि विद्धंसह, एगे एवमाहंसु ४, एगे पुण एवमाहंसु पुरथिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए पुढविकायंसि उत्तिहइ से णं इमं तिरिय लोयं तिरियं करेइ करेत्ता पचस्थिमंसि लोयतंसि सायं सरिए। पुढविकापंसि अणुपविसह अणुपविसित्ता अहे पडियागच्छद २ पुणरवि अवरभूपुरस्थिमाओ लोगंताओ दीप अनुक्रम [३१] अथ द्वितियं प्राभृतं आरब्धं अत्र द्वितिये प्राभृते प्राभृतप्राभृतं- १ आरभ्यते ~94~
SR No.004116
Book TitleAagam 16 SOORYA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages600
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_suryapragnapti
File Size128 MB
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