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आगम
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"सूर्यप्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) प्राभृत [१३], -------------------- प्राभृतप्राभृत [-], -------------------- मूलं [८१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१६], उपांग सूत्र - [५] "सूर्यप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
सुत्रांक
[८१]
दीप अनुक्रम [१०९]
|सतभाग मंडलस्स, (ता) आइयेणं अद्धमासेणं चंदे कति मंडलाइं चरति ?,(ता) सोलस मंडलाइं चरति सोलस-12 |मंडलचारी तदा अवराई खलु दुवे अट्टकाई जाई चंदे केणइ असामण्णकाई सयमेव पविहित्ता २ चार चरति, कतराई खलु दुचे अट्टकाइं जाई चंदे केणइ असामण्णकाई सयमेव पविट्टित्तार चारं चरति ?, इमाई खलु ते थे| अहगाई जाई चंदे केणइ असामणगाई सयमेव पविद्वित्ता २ चारं चरति, तंजहा-निक्खममाणे चेवा अमावासंतेणं पविसमाणे चेव पुण्णिमासिंतेणं, एताई खलु दुवे अट्ठगाई जाई चंदे केणइ असामण्णगाई सयमेव पविद्वित्तार चारं चरइ, ता पढमायणगते चंदे दाहिणाते भागाते पविसमाणे सत्त अद्धमंडलाई जाइंग |चंदे दाहिणाले भागाए पविसमाणे चारं चरति, कतराई खलु ताई सत्त अद्धमंडलाई जाई चंदे दाहिणाते| भागाते पविसमाणे चारं चरति है, इमाई खलु ताई सत्त अमंडलाई जाई चंदे दाहिणाते भागाते पविसमाणे चारं चरति, तं०-विदिए अद्धमंडले चउत्थे अद्धमंडले छट्टे अमंडले अट्ठमे अद्धमंडले दसमे अहम-13 |डले यारसमे अहमंडले चउदसमे अद्धमंडले एताई खलु ताई सत्त अद्धमंडलाई जाई चंदे दाहिणाते भागाते पविसमाणे चार चरति, ता पढमायणगते चंदे उत्तराते भागाते पविसमाणे छ अधमंडलाई तेरस य सत्तद्विभागाइं अद्धमंडलस्स जाई चंदे उत्तराते भागाए पविसमाणे चारं चरति, कतराई खलु ताई छ अहमंड|लाई तेरस य सत्तविभागाई अद्धमंडलस्स जाई चंदे उत्तराते भागाते पविसमाणे चार चरति !, इमाई| | खलु ताई छ अहमंडलाई तेरस य सत्तविभागाई अद्धमंडलस्स जाई चंदे उत्तराए भागाते पविसमाणे चारं
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