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________________ आगम (१६) सूर्यप्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) प्राभृत [६], ------------------- प्राभृतप्राभृत [-], -------------------- मूलं [२७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१६], उपांग सूत्र - [9] "सूर्यप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: ६ ओजःस्थिति प्रत सूत्रांक प्राभृते सू२७ [२७] दीप अनुक्रम [३७] सूर्यप्रज्ञ- ता अणुउस्सप्पिणिओसप्पिणिमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पजति अण्णा अवेति, एगे एवमाहंसुवयं प्तिवृत्ति पुण एवं वदामो ता तीसं २ मुहुत्ते सूरियस्स ओया अवहिता भवति, तेण परं सूरियस्स ओया अणवाहिता (मल°भवति, छम्मासे सरिए ओपंणिबुड्डेति छम्मासे सरिए ओर्य अभिवति, णिक्खममाणे सरिए देसं णिचुहेति| ॥७९॥ पविसमाणे सूरिए देसं अभिवुहेह, तत्व को हेतूति वदेजा ?,ता अयपणं जंबुद्दीवे २सषदीवसमु० जाव परि-18 क्लेवेणं, ता जया णं सूरिए सबभंतरं मंडलं उथसंकमित्ता चारं चरति तता णं उत्तमकढपत्ते उकोसए अट्टहारसमुहुत्ते दिवसे भवति, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवति, से णिक्खममाणे सूरिए णवं संवच्छ अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अभितराणतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं मूरिए अभि-४ तराणतरं मंडलं उघसंकमित्ता चारं चरति तताणं एगणं राइदिएणं एगं भागं ओयाए दिवसखित्तस्स णिबुद्वित्ता रतणिक्खेत्तस्स अभिवहित्ता चारं चरति, मंडलं अट्ठारसहिं तीसेहिं सतेहिं छित्ता,तता णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति दोहिं एगहिभागमुष्टुत्तेहिं ऊणे दुवालसमुहुत्ता राई भवति दोहिं एगडिभागमुहुत्तेहिं अहिया, से णिक्खममाणे सूरिए दोचंसि अहोरसि अम्भितरतचं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, ता, जया णं सूरिए अम्भितरतचं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तता णं दोहिं राईदिएहिं दो भागे ओयाए दिवसखेत्तस्स णिबुडित्ता रयणिखित्तस्स अभिवढेसा चारं चरति, मंडलं अट्ठारसतीसेहिं सएहिं छेत्ता, तताणं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति चाहिं एगहिभागमुहुत्तेहिं ऊणे दुवालसमुहुत्ता राई भवति चाहिं एगहिभागमु ॥७९॥ ~ 163~
SR No.004116
Book TitleAagam 16 SOORYA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages600
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_suryapragnapti
File Size128 MB
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