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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२३], --------------- उद्देशक: [२], -------------- दारं [-], -------------- मूलं [२९३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
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प्रज्ञापना
या:मलयवृत्ती.
प्रत सूत्रांक [२९३]
२३कर्मप्र
कृतिपदे M२ उद्देशः
सू. २९३
॥४६६॥
दीप अनुक्रम [५४०]
वंगनामेणं भंते ! कति विधे ५०१, गो!तिविधे पं० त०-ओरालियसरीरोवंगणामे वेउबियसरीरोवंग आहारगसरीरोव०सरीखंधणनामेण भंते! कतिविहे पण्णते, गो.! पंचविधे पं० सं०-ओरालियसरीरबंधणणामे जाव कम्मगसरीरबंधणनामे, सरीरसंघायणामे गं भंते ! कति०१, गो०! पंचविधे पं०, तं०-ओरालियसरीरसंघायनामे जाव कम्मगसरीरसंघायनामे, संघयणनामे गं भंते ! कतिविधे पं०, गो०! छविहे पं०, तं-वइरोसभनारायसंघयणनामे उसहनारायसं० नारायसंघ० अद्धनारायसं० कीलियासंघ० छेवट्ठसंघयणनामे, संठाणनामे णं भंते ! कतिविधे पं०१, गो०! छबिहे पं०, तं०-समचउरंससंठाणनामे निग्गोहपरिमंडलसंठा साइसं० धामणसं० खुअसं० इंडसंठाणनामे, वण्णनामे ण भंते ! कम्मे कति विधे पं०१, गो०! पंचविधे पं०,०-कालवण्णनामे जाव सुकिल्लवण्णनामे, गंधनामे णं भंते ! कम्मे पुच्छा, मो०! दु० ५०, तं०-सुरभिगंधनामे दुरभिगंधनामे, रसनामे थे पुच्छा, गो०! पंचविधे पं०, तक-तित्तरसनामे जाव महुररसनामे, फासनामे णं पुच्छा, गो०! अट्टविहे पं०, तं०-कक्खडफासनामे जाव लहुयफासनामे, अगुरुलहुयनामे एगागारे पं०, उवधायनामे एगागारे ५०, पराघातनामे एगागारे पं०, आणुपुविणामे चउबिहे पं०, ०-नेरइयआणुपुषीणामे जाव देवाणुपुरीणामे, उस्सासनामे एगागारे ५०, सेसाणि सवाणि एगागाराई पण्णाचाई जाव तित्थगरनामे, णवरं विहायगतिनामे दुविधे पं० सं०-पसस्थविहायगइनामे अपसत्थविहायगतिनामे य । गोए णं भंते ! कम्मे काविहे पं०१, गो० दुविहे पं०, तं०-उच्चागोए य नीयागोए य, उचागोए णं भंते । कइविधे पं०, गो० अढविधे पं०, ०-जाइनिसिया जाव इस्सरियविसिया, एवं नीयागोएवि, णवरं जातिविहीणता
999990928
॥४६६॥
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