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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२२], ------------- उद्देशक: [-], ------------- दारं [-], ------------- मूलं [२८२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२८२]
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णं भंते ! जीवस्स काइया कि० तस्स पादोसिया कि० जस्स पादोसिया कि० तस्स काइया किं. क०, गो! एवं चेव, जस्स पं भंते ! जीवस्स काइया किरिया कजइ तस्स पारियावणिया किरिया काइ जस्स पारियावणिया किरिया कजइ तस्स कातिया किरिया कज्जा, गो०! जस्स णं जीवस्स काइया कि० क० तस्स पारितावणिया सिय कज्जइ सिय नो कज्जइ, जस्स पुण पारियावणिया कि०क० तस्स काइया नियमा कजति, एवं पाणाइवायकिरियावि, एवं आदिल्लाओ परोप्परं नियमा तिषिण कजंति, जस्स आइल्लाओ तिनि कति तस्स उवरिल्लाओ दोनि सिय कज्जति सिय नो कअंति, जस्स उवरिल्लाओ दोणि कति तस्स आइलाओ नियमा तिणि कज्जति, जस्स गं भंते ! जीवस्स पारियावणिया किरिया कजति तस्स पाणातिवायकिरिया काति, जस्स पाणातिवायकिरिया कञ्जति तस्स पारियावणिया किरिया कजति', गो! जस्स णं जीवस्स पारियावणिया कि० तस्स पाणातिवातकिरिया सिय कजति सिय नो काति, जस्स पुण पाणातिपात किरिया कजति तस्स पारियापणिया किरिया नियमा काति, जस्सणं भैते ! नेरहयस्स काइया किरिया कजति तस्स अधिगरणिया किरिया कजति', गो०! जहेब जीवस्स तहेव नेरइयस्सवि, एवं निरंतरं जाव चेमाणियस्स । जं समयं णं भंते ! जीवस्स काइया कि० क० तं समयं अधिगरणिया कि० जं समयं अधिगरणिया कि० क तं समयं काइया कि, एवं जहेब आइलओ दंडओ तहेव भाणितबो, जाव वेमाणियस्स । जंदेसेणं भंते! जीवस्स काइया कि० तंदेसेणं अधिगरणिया कि तहेव जाच वेमाणियस्स । जंपएसेणं भंते ! जीवस्स काइया कि० तं पदेसं आधिगरणिया कि० एवं तहेव जाव वेमाणियस्त, एवं एते जस्स समयं जंदेस जंपएसेणं चत्वारि दंडगा होति ।
दीप
अनुक्रम [५२९]
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