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________________ आगम (१५) प्रत सूत्रांक [२३१R] दीप अनुक्रम [४७०] प्रज्ञापना याः मल य० वृत्ती. ॥ ३७३ ॥ “प्रज्ञापना” उपांगसूत्र- ४ (मूलं + वृत्ति:) उद्देशक: [६], दारं [-] मूलं [२३१-R] ...आगमसूत्र [१५] उपांग सूत्र [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्तिः पदं [१७], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. Education International - 'कइ णं भंते ! लेस्साओ पन्नत्ताओ' इत्यादि, सुगमं उद्देशकपरिसमाप्तिं यावत्, नवरमुत्पद्यमानो जीवो जन्मान्तरे लेश्याद्रव्याण्यादायोत्पद्यते तानि च कस्यचित्कानिचिदिति । कृष्णलेश्यापरिणतेऽपि जनके जन्यस्य विचित्रलेश्यासंभवः, एवं शेषलेश्या परिणतेऽपि भावनीयं ॥ इति श्रीमलयगिरिविरचितायां प्रज्ञापनाटीकायां सप्तदर्श लेश्यापदं समाप्तमिति ॥ wwwwwwwwwwwwwwwww ॥ इति श्रीमन्मलयगिर्याचार्यविहितवृत्तियुतं श्रीमत्प्रज्ञापनोपाने सप्तदशपदमयं पूर्वार्धं समाप्तम् ॥ NAWAWALAKKKKKKKAAMA For Parts Only अत्र पद (१७) "लेश्या" परिसमाप्तम् ~ 750 ~ AAAA १७ लेश्या पदं
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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