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आगम
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“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१७], -------------- उद्देशक: [२], -------------- दारं [-], -------------- मूलं २१९-२२१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२१९-२२१]
ReceDesenceRECENTRE
दीप अनुक्रम [४५६-४५८
एएसि णं भंते ! कण्हलेसाणं जाव सुकलेसाण य कयरे २ अप्पड्डिया वा महहिया वा?, गो०! कण्हलेसेहितो नीललेसा महड्डिया नीललेसेहितो काउलेसा महड्डिया एवं काउलेस्सहिंतो तेउलेसा महहिया तेउलेसेहितो पम्हलेसा महडिया पम्हलेसेहिंतो सुक्कलेसा महड्डिया, सबप्पहिया जीवा कण्हले० सवमहड्डिया सुकलेसा ।। एएसिणं भंते ! नेरइयाणं कण्हलेसाणं नीललेसाणं काउलेसाण य कयरे २ अप्पड्डिया वा महहिया वा, गो० कण्हलेसेहितो नीलले. महड्डिया नीललेसेहितो काउलेसा महड्डिया, सबप्पड्डिया नेरइया कण्हले०, सल्बमहड्डिया नेरइया काउले०॥ एएसिणं भंते! तिरिक्खजोणियाणं कण्हलेसाणं जाव सुकलेसाण य कयरे कयरेहितो अप्प मह०१, गो०!, जहा जीवाणं । एएसि भंते ! एगिदियतिरिक्खजोणि कण्हलेजाव तेउलेसाण य कयरे कयरेहितो अप्पड्डिया वा महड्डिया वा, गो०, कण्हलेसेहिंतो एगिदियतिरिक्खजो नीलले. महड्डिया नीलले तिरि० काउले. मह काउले. तेउले. महड्डिया, सहप्पड्डिया एगेंदियतिरिक्खजोणिया कण्हले. सबमहड्डिया तेउले । एवं पुढविकाइयाणवि, एवं एएणं अभिलावणं जहेब लेस्साओ भावियाओ तहेव नेय जाव चरिंदिया । पंचेंदियतिरिक्खजोणितिरिक्खजोणिणीणं समुच्छिमाणं गम्भवतियाण य सबेसि भाणि जाप अप्पहिया वेमाणिया देवा तेउले. सचमह० मा० सुकलेसा । केई भणति-चउनीसं दंडएणं इड्डी माणि०(सूत्र २२१) बीओ उद्देसओ समचो । 'एएसिणं भते । इसादि भावना प्रागुक्तानुसारेण कर्तव्या, तिर्यग्योनिकविषयसूत्रसंकलनामाई-एवमेए
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