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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१], --------------- उद्देशक: [-1, ---------------- दारं [-1, --- ------- मूलं [१५] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक [१५]
गाथा:
से कि तं खरवायरपुढविकाइया ?, खरवायरपुढविकाइया अणेगविहा पण्णता, तंजहा-पुढवी य सकरा वालुया य उवले || [सिला य लोणूसे । अय तंब तय सीसय रुष्प सुषन्ने य वइरे य १४ ॥१॥ हरियाले हिंगुलए मणोसिला सासगंजणपवाले । अन्मपडलन्भवालुय बायरकाए मणिविहाणा ८॥२॥ गोमेजए य रुपए अंके फलिहे य लोहियक्खे य । मरगय मसारगल्ले भुयमोयग
इन्दनीले य९॥३॥ चंदण गेरुय हंसगब्भ पुलए सोगन्धिए य बोद्धच्चे | चन्दप्पमवेरुलिए जलकंते सरकते य९॥४॥४०॥ 18 जेयावन्ने तहप्पगारा ते समासओ दुषिहा पन्नत्ता, तंजहा-पजत्तगा य अपञ्जत्तगा य, तत्थणं जे ते अपजत्चगा ते णं असंपत्ता
| तत्थ णं जे ते पजत्तगा एतेसिं वन्नादेसेणं गन्धादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, सझे आई जोणिप्पमुहसत| सहस्साई, पजत्तगणिस्साए अपजत्तमा वकमंति, जत्थ एगो तत्थ नियमा असखेजा, से सं खरवायरपुढविकाइया, से वायर| पुढविकाइया, सेनं पुढविकाइया। (मू०१५) __अथ के ते खरवादरपृथिवीकायिकाः १, सूरिराह-खरवादरपृथिवीकायिका अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, चत्वारिंश
झेदा मुख्यतया प्रज्ञप्ता इत्यर्थः, तानेव चत्वारिंशद्भेदानाह-'तंजहा पुढवी य'इत्यादि गाथाचतुष्टयं, पृथिवीति |भामा सत्यभामावत् शुद्धपृथिवी च नदीतटभित्त्यादिरूपा, चशब्द उत्तरभेदापेक्षया समुचये १ शर्करा-लघूपलशकलरूपा २ वालुका-सिकताः ३ उपलः-टकाधुपकरणपरिकर्मणायोग्यः पाषाणः ४ शिला-घटनयोग्या देवकुलपीठाधुपयोगी महान् पापाण विशेषः ५ लवणं-सामुद्रादि ६ ऊषो-यद्वशादूपरं क्षेत्रम् ७ अयस्तामत्रपुसीसकरूप्यसुव
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दीप अनुक्रम [२४-२९]
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