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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [११], ------------ उद्देशक: [-], ------------ दारं [-], ----------- मूलं [१६८-१६९] + गाथा मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक [१६८-१६९]
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गाथा
गिण्डति ?, गो! दबओवि गिण्हति खेतओवि कालओवि भावओवि गिण्हति, जाति भंते ! दवओ गेण्हति ताई कि एगपदेसिताई गिण्डति दुपदेसियाई जाव अणंतपदेसियाई गेण्हति , गो० नो एगपदेसियाई गेहति जाव नो असंखिजपदेसियाई, गिण्हह अणंतपदेसियाई गेहति, जाई खेतओ गेहति ताई कि एगपएसोगाढाई गेण्हति दुपएसोगाढाई गेण्हति जाव असंखेज्जपएसोगाढाई गेण्हति', गो.1 नो एगपएसोगाढाई गेण्हति जाव नो संखेजपएसोगाढाई गेहति असंखेजपएसोगाढाई गेण्हति, जाई कालतो गेहति ताई कि एगसमयठिइयाई गेहति दुसमयठिड्याई गिण्हति जाव असंखिजसमयठिइयाई गेण्हति ?, गो० एगसमयठितीयाईपि गेण्हति दुसमयठितीयाईपि गेण्हति जाव असंखेजसमयठितीयाईपि गेण्हति, जाई भावतो गेण्हति ताई किं षण्णमंताई गेहति गंधमंताई रसमंताई फासमंताई गेण्हति , गो.! वण्णमंताईपि जाब फासमंताईपि गेहति, जाई भावओ वण्णमंताईपि गेण्हति ताई कि एगवण्णाई मेण्हति जाव पंचवण्णाई गेहति !, गो! गहणदवाई पहुच एगवण्याईपि गेण्हति जाव पंचवण्णाईपि गेहति, सबग्गहणं पडच णियमा पंचषणाई गेण्हति, तंजहा–कालाई नीलाई लोहियाई हालिद्दाई सुकिल्लाई, जाई वष्णतो कालाई गेण्हति ताई कि एगगुणकालाई गेण्हति जाव अणंतगुणकालाई गिण्हति , गो! एगगुणकालाईपि गिण्हति जाव अणंतगुणकालाईपि गेण्हति, एवं जाव सुकिलाईपि, जाई भावतो गंधमंताई गिण्हति ताई कि एगगंधाई गिण्हति दुगंधाई गिण्हति , गो०! गहणदखाई पडुन एगगंधाईपि दुगंधाइपि गिणहति, सहग्गहणं पड़प नियमा दुगंधाई गिहति, जाई गंधतो सुम्मिगंधाई गिण्हति ताई कि एगगुणसुब्भिगंधाई गिण्हति जाव अर्णतगुणमुभिगंधाईपि गिण्हति ?, गो०! एगगुणसुब्भिगंधाईपि जाव अणंतगुणसुब्भि
दीप अनुक्रम [३९१-३९३]
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