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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [११], ---------------- उद्देशक: [-], --------------- दारं [-], -------------- मूलं [१६३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१६३] दीप अनुक्रम यथाऽहमेतत् प्रवीमीति, किं सर्वोऽपि न जानातीत्यत आह-नण्णत्व सण्णिणो' इति, अन्यत्रशब्दोऽत्र परिवर्ज-18 नार्थः, रष्टचाम्यत्रापि परिवर्जनाओं यथा-'अन्यत्र द्रोणभीष्माभ्यां, सर्वे योधाः पराङ्मुखा' इति. द्रोणभीष्मी वर्जयित्वा इत्यर्थः, संज्ञी-अवधिज्ञानी जातिस्परः सामान्यतो विशिष्टमनःपाटवोपेतो वा तस्मादन्यो न जानाति, संज्ञी तु यथोक्तखरूपो जानीते । एवमाहारादिविषयाण्यपि चत्वारि सूत्राणि भावनीयानि, नवरमतिराउले इति देशीपदं, एतत् खामिकुलमित्यर्थः, 'भट्टिदारए' इति भर्त्ता-खामी तस्य दारक:-पुत्रो भर्तृदारका, एवमुदादिविषयाण्यपि पश्च सूत्राणि भावयितव्यानि, नवरमुष्टादयोऽप्यतिवालावस्थाः परिग्राखाः न जरठा, जरठावस्थायां हि परिज्ञानस्य सम्भयात् ॥ सम्प्रत्येकवचनादिभाषाविषयसंशयापनोदार्थ पृच्छति अह भंते ! मणुस्से महिसे आसे हत्थी सीहे वग्धे विगे दीविए अच्छे तरच्छे परस्सरे सियाले विराले सुणए कोलसुणए कोईतिए ससए चित्तए चिल्ललए जे यावन्ने तहप्पगारा सवासा एगवऊ, हंता गो०! मणुस्से जाव चिल्ललए जे यावन्ने त० सवा सा एगवऊ । अह भंते! मणुस्सा जाव चिल्ललगा जे याव० तहप्पगारा सव्वा सा बहुवऊ, हंता गो० मणुस्सा जाय चिल्ललगा सवा सा बहुवऊ। अह भंते ! मणुस्सी महिसी बलवा हत्थिणिया सीही बग्धी विगी दीविया अच्छी तरच्छी परस्सरा रासभी सियाली बिराली सुणिया कोलसुणिया कोकंतिया ससिया चित्तिया चिल्ललिया जे यावन्ने तह सबा सा इत्विवऊ?, इंता गो० मणुस्सी जाव चिल्लालिगा जे यावन्ने तहप्पगारा सबा सा इत्थिवऊ । अह भंते ! मणुस्से जाव चिल्ललये जे 22012 [३७७] 0 38 ~509~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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