SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 464
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (१५) प्रत सूत्रांक [१५४] दीप अनुक्रम [३६१] “प्रज्ञापना” - उपांगसूत्र - ४ ( मूलं + वृत्तिः ) दारं [-], उद्देशक: [ - ], मूलं [ १५४ ] ... आगमसूत्र [१५], उपांग सूत्र [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्तिः पदं [१०], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. | सुगमत्वात्खयं परिभावनीयः, स चैवम्- 'सकरप्पभा णं भंते! पुढवी किं चरमा अचरमा चरमाणि अचरमाणि' इत्यादि । एवं 'अलोगेचि' इति, एवम् उक्तेन प्रकारेणालोकोऽपि वक्तव्यः, स चैवम् - "अलोए णं भंते! किं चरमे अचरमे" इत्यादि प्रश्नसूत्रं तथैव निर्वचनसूत्रं 'गोयमा! अचरमे चरमाणि य चरमंतपदेसा य अचरमंतपदेसा य' तत्र चरमाणि यानि खण्डानि लोकनिष्कुटेषु प्रविशनि शेषमन्यत्सर्वमचरमं चरमखण्डगताः प्रदेशाः चरमान्तप्र| देशाः अचरमखण्डगताः प्रदेशा अचरमान्तप्रदेशाः ॥ सम्प्रत्येतेषु रत्नप्रभादिषु प्रत्येकं चरमाचरमादिगतमल्पबहुत्वमभिधित्सुरिदमाह Education Internation इसीसे णं भंते । रयणप्पभाए पुढवीए अचरमस्स व चरमाण य चरमंतपरसाण य अचरमंतपरसाण य दबट्टयाए पएसट्टयाए दसट्टयाए कयरे २ हिंतो अ० ० तु० वि० १, गोयमा ! सवत्थोवा इमीसे रयणप्पमाए पुढवीए दबट्टयाए एगे अचरमे चरमाई असंखिज्जगुणाई, अचरमं चरमाणि य दोवि विसेसाहिआ, परसट्टयाए सबत्थोवा इमीसे रयणभाए पुढची चरमन्तपदेसा, अचरमंतपदेसा असंखेजगुणा, चरमंतपदेसा य अचरमंतपदेसा य दोवि विसेसाहिआ, दबट्ठपएसइयाए सवत्थोवा इमीसे रयणप्यभाए पुढवीए दट्टयाए एगे अचरिमे, चरिमाई असंखेज्जगुणाई, अचरिमं चरिमाणि य दोवि विसेसाहिआ, चरमंतपएसा असंखेज्जगुणा, अचरमंतपएसा असंखिज्जगुणा, चरमंतपएसा य अचरमंतपसा य दोषि विसेसाहिआ, एवं जाव अहेसत्तमाए सोहम्मस्स जाव लोगस्स एवं चैव । (सूत्रं १५५ ) अलोगस्स गं For Penal Use Only ~ 463~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy