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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [६], --------------- उद्देशक: [-], --------------- दारं [७], --------------- मूलं [१४४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[१४४]
वियाउयं पकरेंति सिय तिभागतिभागे परमवियाउयं पकरेंति सिय तिभागतिभागतिभागावसेसाउया परभवियाउयं
पकरेंति, एवं मणूसावि, वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा नेरइया । दारं । (सूत्र १४४) ला 'नेरझ्या णं भंते ! कइभागाचसेसाउया परभवियाउयं बंध (पकरें)ति' इत्यादि पाठसिद्धं । गतं सप्तमं द्वार, इदाMIनीमष्टमं द्वार, तदेवं यद्भागावशेषेऽनुभूयमानभवायुषि पारभविकमायुर्वन्ति तत्प्रतिपादित, सम्प्रति यत्प्रकार बनन्ति तत्प्रकारं नैरयिकादिदण्डकक्रमेण प्रतिपादयति
काविहे थे भंते ! आउयबंधे पन्नते ?, गोयमा ! छविहे आउयबंधे पभत्ते, जहा-जातिनामनिहत्ताउए गतिनामनिहताउए ठितीणामनिहत्ताउए ओगाहणनामनिहत्ताउए पएसनामनिहत्ताउए अणुभावनामनिहत्ताउए, नेरइयाणं भंते ! काविहे आउयबंधे पन्नते, गोयमा ! छबिहे आउयचंधे पनते, तंजहा-जातिनामनिहत्ताउए गतिणामनिहत्ताउए ठितीणामनिहत्ताउए ओगाहणणामनिहत्ताउए पदेसणामनिहत्ताउए अणुभावणामनिहत्ताउए एवं जाव वेमाणियाणं | जीवा णं भंते ! जातिनामनिहचाउयं कतिहिं आगरिसेहिं पगरेंति ?, गोयमा! जहरेण एकेण वा दोहिं वा तीहिं वा उक्कोसेणं अट्ठहिं, नेरइया णं भंते ! जातिनामनिहत्ताउयं कतिहिं आगरिसेहिं पगरेति !, गोयमा ! जहणं एकेण वा दोहिं वा तीहि वा उकोसेणं अहहिं एवं जाव बेमाणिया, एवं गतिनामनिहत्ताउएवि ठितीणामनिहत्ताउएवि ओगाहणानामनिहत्ताउएवि पदेसनामनिहत्ताउएवि अणुभावनामनिहत्ताउएपि, एतेसिं थे मंते ! जीवाणं जातिनामनिहत्ताउयं जहणं एफेण वा
दीप
अनुक्रम [३५१]
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षष्ठं पदे द्वार-(८) "आकर्ष/आयुबन्ध"
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