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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [६], ------------ उद्देशक: [-],
------ उद्देशक: [-], -------------- दारं [६], ------- मूलं [१३८-१४३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
प्रज्ञापनाया: मलय० वृत्ती.
सूत्रांक [१३८
६ उपपातोद्वर्तनापदे नारकादीनामुद्वर्त्तना
॥२१५॥
-१४३]
अंति, एवं आउवणस्सइसुधि भाणिया, पंचिंदियतिरिक्खजोणियमण्सेसु व जहा नेरइयाणं उपट्टणा समुच्छिमवा तहा माणियवा एवं जाव थणियकुमारा (सूत्रं१३९)। पुढविकाइया णं भंते ! अणंतरं उबट्टित्ता कहिं गच्छति किं नेरइएमु जाव देवेसु, गोयना! नो नेरइएसु तिरिक्खजोणियमसेसु उववजति नो देवेसु उववअंति एवं जहा एतेसि चेव उववाओ तहा उपट्टणावि देववजा भाणियबा, एवं आउवणस्सइवेइंदियतेइंदियचउरिदियावि एवं तेउवाउ० नवरं मणुस्सबजेसु उववजंति (सूत्रं१४०) पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! अणंतरं उज्वट्टित्ता कहिं गच्छंति कहिं उववज्जति', गोयमा ! नेरइएसु जाव देवेसु उववजति, जइ नेरइएसु उववजति किं स्यणप्पभापुढविनेरइएसु उववअंति जाव अहेसतमापुढविनेरइएसु उववजंति ?, गोयमा ! रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववअंति जाव अहेसत्तमापुढविनेरइएसु उववअंति, जइ तिरिक्खजोणिएसु उववअंति किं एगिदिएसु जाव पंचिदिएमु उ०१, गोयमा। एगिदिएसु जाव पंचिदिएम उववजंति, एवं जहा एतेसिं चेव उवषाओ उपटणावि तहेव भाणियचा नवरं असंखेजवासाउएसुवि एते उववअंति, जह मणुस्सेसु उववर्जति किं समुच्छिममणुस्सेसु उववर्जति गम्भवकंतियमसेसु उववजति ?, गोयमा ! दोसृवि, एवं जहा उववाओ तहेव उवणावि भाणियबा, नवरं अकम्मभूमग अंतरदीवग० असंखेजवासाउएसुवि एते उववअंतित्ति माणियई, जइ देवेसु उववर्जति किं भवणवईसु उववअंति जाव किं वेमाणिएसु उववअंति, गोयमा ! सधेसु चेव उववर्जति, जइ भवणवईसु किं असुरकुमारसु उववजंति जाव थणियकुमारेसु उववजंति , गोयमा ! सबेसु चेव उववअंति, एवं वाणमंतरजोइसियवमाणिएसु निरंतर उववजंति जाव सहस्सारो कप्पोत्ति । (सूत्र१४१) । मणुस्सा णं भंते! अणंतरं उघट्टित्ता
दीप अनुक्रम [३४५-३५०]
eesesesecesrce
॥२१॥
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