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आगम
“प्रज्ञापना” - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [५], ---------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं [-], -------------- मूलं [१११]
प्रज्ञापनायाः मलयवृत्ती.
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५ पर्यायपद जघन्यावगाहनादीनां नैरयिका
प्रत
सूत्रांक
॥१८७॥
णांपर्यायाः
[१११]
सूत्रं १११
भंते! नेरइयाणं केवइया पज्जवा पन्नता ?, गोयमा! अर्णता पज्जवा पन्नत्ता, से केणद्वेणं भंते ! एवं बुच्चइ जहठियाण नेरइयाणं अणंता पजवा पनत्ता, गोयमा! जहन्नठिइए नेरइए जहन्नठिइयस्स नेरइयस्स दवट्ठयाए तुल्ले पएसट्ठयाए तुल्ले ओगाहणट्टयाए चउढाणवडिए ठिईए तुल्ले वनगंधरसफासपञ्जवेहिं तिहिं नाणेहिं तिहिं अन्नाणेहिं तिहिं दसणेहिं छहाणवडिए एवं उक्कोसठिइएचि, अजहन्नमणुकोसठिइएवि, नवरं सट्टाणे चउढाणवडिए । जहन्नगुणकालगाणं भंते ! नेरइयाण केवइया पज्जवा पन्नता, गोयमा! अर्णता पज्जवा पन्नचा, से केणटेणं भंते! एवं चुच्चइ-जहन्नगुणकालगाणं नेरइयाण अर्णता पज्जवा पन्नता ?, गोयमा ! जहन्नगुणकालए नेरइए जहन्नगुणकालगस्स नेरइयस्स दवयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले
ओगाहणट्टयाए चउहाणवडिए ठिईए चउहाणबडिए कालवन्नपञ्जवेहिं तल्ले अवसेसेहिं वनगंधरसफासपजचेहिं तिहिं नाणेहिं तिहिं अन्नाणेहिं तिहिं ईसणेहिं छटाणवडिए, से एएणटेणं गोयमा! एवं वुचइ जहनगुणकालगाणं नेरइयाणं अर्णता पजवा पन्नत्ता, एवं उक्कोसगुणकालरवि, अजहन्नमणुक्कोसगुणकालएवि एवं चेव, नवरं कालबन्नपजवेहिं छट्ठाणवडिए, एवं अवसेसा चत्तारि बना दो गंधा पंच रसा अट्ट फासा भाणियहा । जहन्नाभिणियोहियनाणीणं भंते ! नेरइयाणं केवइया पअवा पन्नत्ता, गोयमा! जहन्नाभिणियोहियनाणीण नेरइयाणं अणंता पज्जवा पनत्ता, से केणडेणं भंते ! एवं वुचइ जहनाभिणियोहियनाणी] नेरहयाणं अणंता पज्जवा पन्नता, गोयमा! जहन्नाभिणिचोहियनाणी नेरहए जहनाभिणिवोहियस्स नाणिस्स नेरइयस्स दबट्टयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले ओगाहणयाए चउहाणवडिए ठिईए चउहाणवडिए बन्नगंधरसफासपञ्जवेहिं छहाणवडिए आभिणियोहियनाणपञ्जवेहिं तुल्ले सुयनाण० ओहिनाणपज्जवेहिं छहाणवडिए तिहिं दसणेहिं छहा
दीप अनुक्रम [३१५]
secescaceae
॥१८७॥
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