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________________ आगम (१५) प्रत सूत्रांक [१०४] दीप अनुक्रम [३०८] resetsee Education intimation नैरयिकस्य पर्याय: पदं [५], “प्रज्ञापना” - उपांगसूत्र - ४ ( मूलं + वृत्तिः ) उद्देशक: [-] दारं [-], नेरयाणं भंते ! केवइया पजवा पद्मता १, गोयमा ! अनंता पजवा पन्नत्ता, से केणद्वेणं मंते ! एवं वृच्चइ-नेरइयाणं अनंता पजवा पत्ता १, गोयमा ! नेरइए नेरइयस्स दवहयाए तुल्ले पएसइयाए तुल्ले ओगाहणट्टयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अन्महिए जह हीणे असंखिजड़भागहीणे वा संखिजर भागहीणे वा संखिजगुणहीणे वा असंखिखगुणहीणे वा अह अन्भहिए असंखिज्जइभागमन्महिए वा संखिज्जइ भागमम्भहिए वा संखिजगुणमन्भहिए वा असंखिज्जगुणमन्महिए वा, ठिईए सिय ही सिय तुले सिय अन्महिए जह हीणे असंखिअड़भागहीणे वा संखिञ्जइभागहीणे वा संखिजगुणहीणे वा असंखिअगुणही वा अह अभहिए असंखिञ्जभागमम्भहिए वा संखिञ्जभागमन्भहिए वा संखिज्जगुणमन्भहिए वा असंखिजगु भहिए वा, कालवण्णपञ्जवेहिं सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अम्भहिए, जद हीणे अनंतभागहीणे वा असंखेज्जभागहीणे संखेज्जभागहीणे वा संखेअगुणहीणे वा असंखेजगुणहीणे वा अनंतगुणहीणे वा अह अन्भहिए अनंतभागम भहिए वा असंखेजभागमन्महिए वा संखेजभागमन्भहिए वा संखेजगुणमन्भहिए वा असंखे अगुणमन्भहिए वा अनंतगुणमन्महिए वा, नीलवन्नपञ्जवेहिं लोहियवन्नपञ्जवेहिं पीयवनपज्जवेहिं हालियनपअवेहिं सुकिल्लवनपज्जवेहिं छट्टाणवडिए, सुभिगंधपजवे हिं दुभिगंधपज्जवेहिय छट्ठाणचडिए, तित्तरसपजवेहिं कडुयरसपञ्जवेहिं कसायरसपज्जवेहिं अंबिलरसपज्जवेहिं महुररसपजवेहिं छट्ठाणवडिए, कक्खडफासपज्जवेहिं मउयफासपज्जवेहिं गरुयफा सपजवेहिं लहुयफासपज्जवेहिं सीयफासपञ्जवेहिं उसिणफासपञ्जवेहिं निद्धफासपजहिं लुक्खफासपजवेहिं छट्टाणवडिए, आभिणियोहियनाणपञ्जवेहिं सुयनाणपअवेहिं ओहिनाणपअवेहिं महअन्नाणपज्जवेहिं सुयअनाणपञ्जवेहिं विभंगनाणपञ्जवेहिं चक्खुदंसणपज्जवेहिं अश्वक्खुदंसणपञ्जवेहिं ओहिदंसणपञ्ज For Full मूलं [ १०४] ~ 363~ ରେ 339392929200222902029
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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