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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१]. ---------. ..-- उद्देशक: -1, ------------------ दारं [-], ... ........-- मूलं [...४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
सुत्राक
(४)
यसण्ठाणपरिणयावि २०,१०० जे फासतो कक्खडफासपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणतावि नीलवणपरिणसावि लोहियवण्णपरिणयावि हालिदवण्णपरिणतावि सुफिलवण्णापरिणतावि गन्धओ सुभिगन्धपरिणयावि भिगन्धपरिणतावि रसओ तित्तरसपरिणतावि कडुयरसपरिणतावि कसायरसपरिणतावि अम्बिलरसपरिणतावि महुररसपरिणतावि फासओ गुरुयफासपरिणतावि
लहुयफासपरिणतावि सीतफासपरिणतावि उसिणकासपरिणतावि णिद्धफासपरिणताबि लुक्खफासपरिणतावि सण्ठाणतो परिम-| 8ण्डलसण्ठाणपरिणतावि बहसण्ठाणपरिणतावि तंससण्ठाणपरिणतावि चउरंससण्ठाणपरिणवावि आयतसण्ठाणपरिणयावि २३,
जे फासओ मउयफासपरिणता ते वणओ कालवण्णपरिणतावि नीलवण्णपरिणतावि लोहियवण्णपरिणतावि हालिद्दवण्णपरिणयावि सुकिल्लवण्णपरिणयावि गन्धओ सुम्भिगन्धपरिणतावि दुभिगन्धपरिणतावि रसओ तित्तरसपरिणतावि कड्यरसपरिणतावि कसायरसपरिणताचि अम्बिलरसपरिणतावि महुररसपरिणतावि फासओ गुरुयफासपरिणयावि लहुयफासपरिणयावि सीतफासपरिणयावि उसिणकासपरिणयावि गिद्धफासपरिणतावि लुक्खफासपरिणयावि सण्ठाणओ परिमण्डलसण्ठाणपरिणयावि वट्ट| सण्ठाणपरिणवावि तंससण्ठाणपरिणयावि चउरंससण्ठाणपरिणयावि आययसष्ठाणपरिणयाचि २३, जे फासओ गुरुयफासपरिगता ते वणओ कालवण्णपरिणतावि नीलवण्णपरिणतावि लोहियवण्णपरिणतावि हालिद्दवण्णपरिणवावि सुकिल्लवण्णपरिणताविKI गन्धओ सुभिगन्धपरिणताबि दुभिगन्धपरिणतावि रसओ तित्तरसपरिणताबि कडुयरसपरिणतावि कसायरसपरिणतावि अम्बिल-II
रसपरिणतावि महुररसपरिणतावि फासओ कक्खडफासपरिणतावि मउयफासपरिणताबि सीयफासपरिणतावि उसिणफासपरि-18 Mणतारि गिद्धफासपरिणतापि लुक्खफासपरिणतापि सण्ठाणओ परिमण्डलसण्ठाणपरिणतादि वट्टसण्ठाणपरिणयावि तंससण्ठाणप-|
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अनुक्रम [१३]
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