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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं वृत्ति:) -------- उद्देशक: [-1, -------------- दारं [२५], --------------- मूलं [८६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत प्रज्ञापनायाः मलयवृत्ती. ३ अल्पबहुत्वपदे सुत्रांक विकले. क्षेत्रानु. न्द्रिया० [८६] ॥१५२॥ दीप अनुक्रम [२९०] जगुणा तिरियलोए संखिजगुणा । खित्ताणुवाए सवयोवा तेइंदिया पजत्तया उड्डलोए उडलोयतिरियलोए असंखिजगुणा तेलुके असंखिजगुणा अहोलोयतिरियलोए असंखिजगुणा अहोलोए संखिज्जगुणा तिरियलोए संखिज्जगुणा । खिताणुवाएर्ण सबथोवा चउरिंदिया जीवा उडलोए उड्डलोयतिरियलोए असंखिजगुणा तेलोके असंखिजगुणा अहोलोयतिरियलोए असंखिज्जगुणा अहोलोए संखिज्जगुणा तिरियलोर संखिजगुणा। खिचाणुवाएणं सबथोवा चाउरिदिया जीवा अपजत्तया उडलोए उडलोयतिरियलोए असंखिजगुणा तेलुके असंखिजगुणा अहोलोयतिरियलोए असंखिज्जगुणा अहोलोए संखिजगुणा तिरियलोए संखिजगुणा । खित्ताणुवाएणं सवत्थोवा चउरिदिया जीवा पञ्जत्तया उडलोए उड्डलोयतिरियलोए असंखिजगुणा तेलोके असंखिजगुणा अहोलोयतिरियलोए असंखिजगुणा अहोलोए संखिजगुणा तिरियलोए संखिजगुणा (सू०८६) क्षेत्रानुपातेन' क्षेत्रानुसारेण चिन्त्यमाना द्वीन्द्रियाः सर्वस्तोका ऊलोके, ऊर्द्धलोकस्यैकदेशे तेषां संभवात् , तेभ्य ऊर्द्धलोकतिर्यग्लोके प्रतरद्वयरूपेऽसङ्ख्यगुणाः, यतो ये ऊर्द्धलोकात्तिर्यग्लोके तिर्यग्लोकादूई लोके वीन्द्रिय-1 त्वेन समुत्पत्तुकामास्तदायुरनुभवन्त ईलिकागत्या समुत्पद्यते ये च द्वीन्द्रिया एव तिर्यग्लोकादू लोके ऊईलोकाङ्का तिर्यग्लोके द्वीन्द्रियत्वेनान्यत्वेन वा समुत्पत्कामाः कृतप्रथममारणान्तिकसमुद्घाताः अत एव द्वीन्द्रियायुः प्रतिसंवेदयमानाः समुद्घातयशाच दूरतरविक्षिप्सनिजात्मप्रदेशदण्डा ये च प्रतरद्वयाध्यासितक्षेत्रसमासीनास्ते यथोक्त PAREnatantamanena ~308~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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