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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [३], --------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं [१६-२१], .mmm.--- मूलं [७३-७८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[७३-७८]
रीसनोअपरीताण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा, गोयमा! सबथोवा जीवा परीत्ता नोपरीत्तानोअपरीचा अणंतगुणा, अपरीचा अणंतगणा । दारं (मू०७४) । एएसिणं भंते। जीवाणं पजत्ताणं अपअत्ताणं नोपजत्तानोअपजत्ताण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहया वा तल्ला वा विसेसाहिया वा, गोयमा सबथोवा जीवा नोपजत्तानोअपजत्तगा अपज्जत्तगा अर्णतगुणा पञ्जतगा संखिजगणा। दारं। (मू०७५)। एएसि णे भत। जीवाणं सुहमाणं चायराणं नोमुहुमनोवायराण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा, गोयमा! सबथोवा जीवा नोसुहमानोबायरा बायरा अर्णतगुणा महमा असंखेजगणा दारं।(मू०७६) । एएसि र्ण भते। जीवाणं समीणं असबीण नोसन्नीनोअसनीणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला या विसेसाहिया वा, गोयमा ! सवथोवा जीवा सन्नी नोसन्नीनोअसनी अर्णतगुणा असनी अर्णतगुणा । दारं । (सू०७७)। एएसि गं भते ! जीवाणं भवसिद्धियाणं अभवसिद्धियाणं नोभवसिद्धियानोअभवसिद्धियाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा, गोषमा! सबथोवा जीवा अभवसिद्धिया णोभवसिद्धियाणोअभवसिद्रिया अर्णतगुणा भवसिद्धिया अणंतगुणा । दारं । (मु०७८)। सर्वस्तोका भाषका-भाषालब्धिसम्पन्नाः, द्वीन्द्रियादीनामेव भाषकत्वात्, अभाषका-भाषालब्धिहीना अनन्तगुणाः, वनस्पतिकायिकानामनन्तत्वात् ॥ गतं भाषकद्वारं, सम्प्रति परीत्तद्वारमाह-इह परीत्ता द्विविधाः
दीप
अनुक्रम [२७७-२८२]
प्र.२४
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