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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [३], --------------- उद्देशक: H, -------------- दारं [३], -------------- मूलं [५८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
[५८]
तगा असंखेजगुणा । एएसिणं भंते ! तेइंदियाणं पञ्जचापञ्जचाणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिआ वा, गोयमा ! सबथोवा तेइंदिया पजत्तगा तेईदिया अपजत्तगा असंखेजगुणा ।। एएसिणं भंते ! चरिंदियाणं पजत्तापजत्ताण कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिता वा ?, गोयमा ! सबथोवा चरिंदिया पज्जत्तगा चउरिदिया अपज्जतगा असंखेजगुणा ।। एएसिणं भंते ! पंचिंदियाणं पजत्तापज्जत्ताणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिआ वा, गोयमा ! सबथोवा पंचेंदिया पजत्चगा पंचेंदिया अपजत्तगा असंखेजगुणा ।। एएसि णं भंते सइंदियाण एगिदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिदियाणं पंचिंदियाणं पजत्तापजत्ताणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला चा विसेसाहिआ वा ?, गोयमा ! सवत्थोवा चरिंदिया पञ्जत्तगा पंचिंदिया पजत्तगा विसेसाहिआ बेइंदिया पजत्तगा विसेसाहिआ तेइंदिया पजत्तगा विसेसाहिआ पंचिदिया अपजत्तगा असंखेजगुणा चउरिदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिआ तेइंदिया अपजत्तगा विसेसाहिआ बेइंदिया अपजत्तमा विसेसाहिआ एगिदिया अपजत्तगा अर्णतगुणा सइंदिआ अपजत्तमा विसेसाहिआ एगिदिया पज्जत्तगा संखेजगुणा सइंदिआ पज्जत्तगा विसेसाहिआ सइंदिया विसेसाहिआ। दारं ३ ॥ (सूत्रं ५८)
सर्वस्तोकाः पञ्चेन्द्रियाः सत्येययोजनकोटीकोटीप्रमाणविष्कम्भसूचीप्रमितप्रतरासयेयभागवर्त्य सङ्ग्येयश्रेणिग-| ताकाशप्रदेशराशिप्रमाणत्वात् , तेभ्यश्चतुरिन्द्रिया विशेषाधिकाः, विष्कम्भसूच्यास्तेषां प्रभूतसोययोजनकोटीको
दीप अनुक्रम [२६२]
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