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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [३६], ------------- उद्देशक: [-], ------------- दारं [-], ------------- मूलं [३४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३४८] ३६ समु: घातपर्द योगनिरो धः सू. ३४९ creeeeeeector: प्रज्ञापना- लियकाययोगं गमणाई पाडिहारियाणं वा। पचप्पणं करेजा जोगनिरोहं तओ कुणइ ॥२॥ किन्न सयोगो सिज्झइ याः मल-18स बंधहेउत्ति जं सजोगोऽयं । न समेइ परमसुकं स निजराकारणं परमं ॥३॥" अत एवाहय० वृत्ती. से ण भंते ! तहा सजोगी सिज्झति जाव अंतं करेति !, गो० नो इणढे समहे, से णं पुवमेव सपिणस्स पंचिंदियपज्जत॥६०७॥ यस्स.जहष्णजोगिस्स हेडा असंखेजगुणपरिहीणं पढम मणजोगं निरंभति, ततो अणंतर इंदियपजत्तगस्स जहण्णजोगिस्स हेडा असंखिजगुणपरिहीणं दोश्चं वतिजोगं निरंभति, ततो अणंतरं च णं सुहुमस्स पणगजीवस्स अपजत्तयस्स जहष्णजोगिस्स हेवा असंखेनगुणपरिहीणं तचं कायजोगं निरंभति, से गं एतेण उवाएणं-पढम मणजोगं निरंभति मणजोगं निमंभित्ता वतिजोगं निरुभति वयजोगं निरुभित्ता कायजोगं निरंभइ कायजोगं निलंभित्ता जोगनिरोह करेति जोगनिरोहं करेता अजोगतं पाउणति अजोगयं पाउणिचा इसि हस्सर्यचक्खरुचारणद्वाए असंखेजसमइयं अंतोमुहुत्तियं सेलेसि पडिवज्जइ, पुषरइयगुणसेढीयं च णं कम्म, तीसे सेलेसिमदाए असंखेज्जाहिँ गुणसेढीहि असंखेजे कम्मखंधे खवयति खवइत्ता वेदणिज्जाउणामगोत्ने इचेते चत्वारि कम्मसे जुगर्व खवेति, जुगवं खवेत्ता ओरालियतेयाकम्मगाई सबाहिं विष्पजहण्णाहिं विष्पजहति, विप्पजहिता उन्जुसेढीपडिवण्णो अफुसमाणगतीए एगसमएणं अविग्गहेणं उडे गंता सागारोवउत्ते सिज्झाइ बुझाइ तत्थ सिद्धो भवति, ते णं तत्थ सिद्धा भवंति असरीरा जीवघणा देसणणाणोवउचा णिडियट्ठा णीरया जिरेपणा वितिमिरा रिसुद्धा सासयमणागयर्द्ध कालं चिट्ठति, से केणद्वेणं भंते । एवं बुचद ते णं दीप erestsee अनुक्रम [६२०] ॥६०७॥ ~ 1218~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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