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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [३६], -------------- उद्देशक: [-], ------------- दारं [-], -------------- मूलं [३३९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रज्ञापना-
प्रत सूत्रांक [३३९]]
य०वृत्तौ.
॥५८५॥
दीप अनुक्रम [६०९]
गो ! अणंता, के० पु.१, गो! कस्लइ अस्थि कस्सइ नत्थि, जस्स अस्थि एमो वा दो वा तिषिण या उक्कोसणं
३६ समुसंखेज्जा वा असं०. अनंता वा, एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स असुरकुमारत्ते केव० लोभस. अतीता,
गोदघातपर्द अर्णता, के० पु.?, गो! क. अत्धि क नत्थि, जस्सस्थि सिय संखेजा सिय असं० सिय अणंता, एवं जाव स्वपरस्थानेरइयस्स थणियकुमारते, एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स पुढविकाइयत्ते के० लोभस० अतीता ?, गो! अर्णता, ने कषायके. पुरे०१, गो०! क. अस्थि क.नस्थि, जस्स अस्थि जह० एको वा दो वा तिष्णि चा उको संखे. असं. स. सू. अणंता वा, एवं जाव मणूसत्ते, वाणमंतरत्ते जहा असुरकुमारत्ते, एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स जोइसियत्ते के । लोभस० अतीता, गो! अणंता, केवइया पुरे०१, गो! कस्सइ अस्थि कस्सइ नत्थि जस्सस्थि जहएको वा दो वा तिण्णि वा उक्कोसेणं सिय संखेजा सिय असंखेजा सिय अणंता, एवं जाव वेमाणियत्तेऽपि भाणियचं, एगमेगस्स णं भंते ! असुरकुमारस्स नेरइयत्ते के० लोभस अतीता ?, गो ! अणंता, केवइया पुरे०१, गो! कस्सइ अस्थि कस्सइ नत्थि, जस्सस्थि जह० एको वा दो वा तिषिण वा उक्को.सं. असं० अणंता वा, एगमेगस्स णं भंते । असुरकुमारस्स असुरकुमारसे के. लोभस० अतीता, गो.! अणंता, के० पु.१, गो! का अ.क. नत्थि, जस्सत्थि जह० एको वा दो वा तिण्णि वा उक्को० सं० असं० अर्णता वा, एगमेगस्स णे भंते ! ॥५८५] असुरकुमारस्स नागकुमारत्ते पुच्छा, गो! अणंता, के० पु.१, गो. क. अस्थि कस्सद नस्थि, जस्सस्थि सिय
Seलन
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Saintairatumhalana
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